श्री रामकृष्ण, श्रीमाँ या स्वामी विवेकानन्द की संक्षिप्त जीवनी व सन्देश /shri ramkrishna ,shrimaa or swami vivekananda ki sankshipt jivani va sandesh

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1. श्री रामकृष्ण परमहंस (1836–1886)

जीवनी:
श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर गाँव में हुआ था। बचपन से ही वे अत्यंत भावुक, आध्यात्मिक और सरल स्वभाव के थे। दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी के रूप में सेवा करते हुए, उन्होंने माँ काली के साक्षात् दर्शन किए। उन्होंने विभिन्न धार्मिक साधनाएँ अपनाईं — हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई साधनाएँ — और अंततः यह अनुभव किया कि सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं। वे जीवन भर परमात्मा के प्रेम, भक्ति और साधना के संदेशवाहक रहे।

संदेश:

  • “जितने मत, उतने मार्ग।”

  • “ईश्वर को पाने के लिए सच्ची तड़प और प्रेम चाहिए।”

  • “धर्म का सार है — ईश्वर का अनुभव करना।”


2. श्री माँ शारदा देवी (1853–1920)

जीवनी:
श्री माँ शारदा देवी का जन्म 22 दिसंबर 1853 को पश्चिम बंगाल के जयरामबाटी गाँव में हुआ था। वे श्री रामकृष्ण परमहंस की धर्मपत्नी थीं, किंतु उनका संबंध सांसारिक से अधिक आध्यात्मिक था। उन्होंने अपने जीवन में करुणा, सेवा, सहनशीलता और साधना का आदर्श प्रस्तुत किया। श्री माँ ने रामकृष्ण मिशन के कार्यों को आगे बढ़ाया और अनगिनत शिष्यों को मातृवत प्रेम प्रदान किया।

संदेश:

  • “सभी को मातृभाव से देखो।”

  • “अगर तुम किसी की गलती नहीं देख सकते, तो उसे सच्चा प्रेम दे सकते हो।”

  • “अपने ऊपर विश्वास रखो, ईश्वर पर विश्वास रखो।”


3. स्वामी विवेकानंद (1863–1902)

जीवनी:
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ। बचपन में उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे बचपन से ही जिज्ञासु, निर्भीक और सत्य की खोज में लगे रहे। श्री रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा प्राप्त कर उन्होंने अद्वैत वेदांत का गहन अध्ययन किया और विश्वभर में भारतीय अध्यात्म का प्रचार किया। 1893 में शिकागो के विश्व धर्म महासभा में उनके ऐतिहासिक भाषण ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।

संदेश:

  • “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।”

  • “शक्ति ही जीवन है, दुर्बलता मृत्यु है।”

  • “अपने भीतर ईश्वर को देखो और सब प्राणियों में भी उसी को अनुभव करो।

Description

1. Sri Ramakrishna Paramahamsa (1836–1886)

Life:
Sri Ramakrishna was born on 18 February 1836 in Kamarpukur, West Bengal, India. From a young age, he showed deep devotion, spiritual sensitivity, and simplicity. While serving as a priest at the Dakshineswar Kali Temple, he had profound spiritual experiences and realized the Divine Mother, Kali. He practiced different religious paths — Hinduism, Islam, and Christianity — and concluded that all religions lead to the same truth. His entire life was a living example of pure devotion, intense love for God, and universal acceptance.

Message:

  • “As many faiths, so many paths.”

  • “The goal of life is to realize God.”

  • “True yearning and love for God is the key to spiritual realization.”


2. Sri Maa Sarada Devi (1853–1920)

Life:
Sri Maa Sarada Devi was born on 22 December 1853 in Jayrambati, West Bengal. She was the spiritual consort of Sri Ramakrishna. However, their relationship was primarily spiritual, beyond worldly ties. After Ramakrishna’s passing, she became the spiritual mother for thousands of devotees. Her life was a shining example of love, forgiveness, patience, selfless service, and inner strength. She played a crucial role in nurturing the Ramakrishna Mission.

Message:

  • “Learn to make the whole world your own. No one is a stranger.”

  • “If you cannot find fault in others, you can truly love them.”

  • “Have faith in yourself and in God.”


3. Swami Vivekananda (1863–1902)

Life:
Swami Vivekananda was born on 12 January 1863 in Kolkata (then Calcutta). His childhood name was Narendranath Datta. A fearless seeker of truth, he met Sri Ramakrishna and was deeply transformed. After Ramakrishna’s passing, he took up the mission of spreading Vedanta and the message of spiritual unity across India and the world. His historic speech at the World Parliament of Religions in Chicago (1893) introduced Hindu philosophy to the global stage.

Message:

  • “Arise, awake, and stop not till the goal is reached.”

  • “Strength is life, weakness is death.”

  • “See God in every being and serve them selflessly.”

1. श्री रामकृष्ण परमहंस (1836–1886)

जीवनी:
श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर गाँव में हुआ था। बचपन से ही वे अत्यंत भावुक, आध्यात्मिक और सरल स्वभाव के थे। दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी के रूप में सेवा करते हुए, उन्होंने माँ काली के साक्षात् दर्शन किए। उन्होंने विभिन्न धार्मिक साधनाएँ अपनाईं — हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई साधनाएँ — और अंततः यह अनुभव किया कि सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं। वे जीवन भर परमात्मा के प्रेम, भक्ति और साधना के संदेशवाहक रहे।

संदेश:

  • “जितने मत, उतने मार्ग।”

  • “ईश्वर को पाने के लिए सच्ची तड़प और प्रेम चाहिए।”

  • “धर्म का सार है — ईश्वर का अनुभव करना।”


2. श्री माँ शारदा देवी (1853–1920)

जीवनी:
श्री माँ शारदा देवी का जन्म 22 दिसंबर 1853 को पश्चिम बंगाल के जयरामबाटी गाँव में हुआ था। वे श्री रामकृष्ण परमहंस की धर्मपत्नी थीं, किंतु उनका संबंध सांसारिक से अधिक आध्यात्मिक था। उन्होंने अपने जीवन में करुणा, सेवा, सहनशीलता और साधना का आदर्श प्रस्तुत किया। श्री माँ ने रामकृष्ण मिशन के कार्यों को आगे बढ़ाया और अनगिनत शिष्यों को मातृवत प्रेम प्रदान किया।

संदेश:

  • “सभी को मातृभाव से देखो।”

  • “अगर तुम किसी की गलती नहीं देख सकते, तो उसे सच्चा प्रेम दे सकते हो।”

  • “अपने ऊपर विश्वास रखो, ईश्वर पर विश्वास रखो।”


3. स्वामी विवेकानंद (1863–1902)

जीवनी:
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ। बचपन में उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे बचपन से ही जिज्ञासु, निर्भीक और सत्य की खोज में लगे रहे। श्री रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा प्राप्त कर उन्होंने अद्वैत वेदांत का गहन अध्ययन किया और विश्वभर में भारतीय अध्यात्म का प्रचार किया। 1893 में शिकागो के विश्व धर्म महासभा में उनके ऐतिहासिक भाषण ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।

संदेश:

  • “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।”

  • “शक्ति ही जीवन है, दुर्बलता मृत्यु है।”

  • “अपने भीतर ईश्वर को देखो और सब प्राणियों में भी उसी को अनुभव करो।

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