Description
भौम वृन्दावन की प्रकटलीला के सर्वोत्कर्षमयी होने का कारण है योगमाया द्वारा श्रीकृष्ण की स्वरूपशक्ति, उनकी परम स्वीया कान्तागण की परकीया-अभिमानिनी रूप में प्रतीति करा श्रीकृष्ण को परमास्वाद्य परकीया-रस का आस्वादन कराना। यह रस परमोज्ज्वल और सर्वथा अनवद्य है। इस रूप में इसका प्रतिपादन श्रीमद्भागवत में रासलीला के उपसंहार में परीक्षित-शुक सम्वाद में स्पष्टरूप से किया गया है। जीवगोस्वामी ने इस ग्रन्थ में परकीया-रस का ही प्रतिपादन किया है। पर उत्तर चम्पू के पैंतीस वें पूरण में उन्होंने श्रीराधा-माधव-विवाह-प्रसंग का वर्णन किया है।
श्री भागवत सन्दर्भ (षट् सन्दर्भ) और दूसरा है- श्री गोपाल चम्पू | श्रीभागवत सन्दर्भ सिद्धांत ग्रन्थ है और श्री गोपाल चम्पू लीला ग्रन्थ है| श्रीभागवत सन्दर्भ ग्रन्थ क्रमशः 6 भागों- श्री तत्त्व सन्दर्भ, श्रीभगवत सन्दर्भ, श्री परमात्म सन्दर्भ, श्री कृष्ण सन्दर्भ, श्री भक्ति सन्दर्भ व श्री प्रीति सन्दर्भ में विभक्त होने के कारण श्री षट् सन्दर्भ भी कहलाता है | प्रथम चार सन्दर्भों में सम्बन्ध तत्त्व का ज्ञान वर्णित है, पांचवे भक्ति सन्दर्भ में अभिधेय तत्व और छठे प्रीति सन्दर्भ में प्रयोजन तत्त्व का ज्ञान वर्णित है| अतः कृष्ण तत्त्व का सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादन करने से ही श्रील जीव गोस्वामी पाद जी गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के ‘तत्त्वाचार्य’ कहलाते हैं| इन्होने ही वेदांत के चरमसिद्धांत ‘अचिन्त्यभेदाभेद’ की भी विशद व्याख्या की है जो की चैतन्य महाप्रभु द्वारा प्रतिपादित वेदांत सिद्धांत है|
Additional information
Weight | 0.3 kg |
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