श्रीविष्णुपुराण/ Shri Vishnu Puran

200.00

यह एक वैष्णव महापुराण है, यह सब पातकों का नाश करने वाला है।

श्रीविष्णुपुराण (Shri Vishnu Puran)  

परिचय:
श्रीविष्णुपुराण हिन्दू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्राचीन पुराण है। इसे विष्णु भक्तों का प्रमुख ग्रंथ माना जाता है। इसमें भगवान विष्णु की महिमा, सृष्टि की रचना, धर्म के सिद्धांत, अवतारों की कथा, और जीवन के आदर्शों का वर्णन है। इसकी रचना महर्षि पराशर ने की थी और इसका संवाद उन्होंने अपने पुत्र महर्षि वेदव्यास को सुनाया था।


मुख्य विषय-वस्तु:
श्रीविष्णुपुराण में कुल 6 खण्ड (अंश) होते हैं:

1. प्रथम अंश (सृष्टि खण्ड):

2. द्वितीय अंश (भूगोल खण्ड):

  • सप्तद्वीप, सप्तसमुद्र, और सप्तलोकों का विस्तार

  • पृथ्वी के भूगोल और ब्रह्माण्ड की संरचना

3. तृतीय अंश (वंश खण्ड):

4. चतुर्थ अंश (मन्वन्तर खण्ड):

  • 14 मन्वन्तरों का क्रम और उनके अधिपति

  • विभिन्न देवताओं और अवतारों का कार्य

5. पंचम अंश (कृष्ण चरित्र खण्ड):

  • श्रीकृष्ण भगवान का पूर्ण चरित्र

  • बाल लीलाएं, मथुरा गमन, रासलीला, कुरुक्षेत्र युद्ध आदि

  • धर्म की स्थापना हेतु कृष्णावतार का उद्देश्य

6. षष्ठ अंश (धर्म और मोक्ष खण्ड):

  • धर्म, अध्यात्म, योग, भक्ति और मोक्ष की शिक्षा

  • कलियुग के लक्षण और धर्म की रक्षा के उपाय

इसकी कथा निम्नलिखित भागों मे वर्णित है-

भाग-प्रथम अंश-

इसके पूर्वभाग में शक्ति नन्दन पराशर ने मैत्रेय को छ: अंश सुनाये है, उनमें प्रथम अंश में इस पुराण की अवतरणिका दी गयी है। आदि कारण सर्ग देवता आदि जी उत्पत्ति समुद्र मन्थन की कथा दक्ष आदि के वंश का वर्णन ध्रुव तथा पृथु का चरित्र प्राचेतस का उपाख्यान प्रहलाद की कथा और ब्रह्माजी के द्वारा देव तिर्यक मनुष्य आदि वर्गों के प्रधान प्रधान व्यक्तियो को पृथक पृथक राज्याधिकार दिये जाने का वर्णन इन सब विषयों को प्रथम अंश कहा गया है।

भाग-द्वितीय अंश

प्रियव्रत के वंश का वर्णन द्वीपों और वर्षों का वर्णन पाताल और नरकों का कथन, सात स्वर्गों का निरूपण अलग अलग लक्षणों से युक्त सूर्यादि ग्रहों की गति का प्रतिपादन भरत चरित्र मुक्तिमार्ग निदर्शन तथा निदाघ और ऋभु का संवाद ये सब विषय द्वितीय अंश के अन्तर्गत कहे गये हैं।

भाग-तीसरा अंश

मन्वन्तरों का वर्णन वेदव्यास का अवतार, तथा इसके बाद नरकों से उद्धार का वर्णन कहा गया है। सगर और और्ब के संवाद में सब धर्मों का निरूपण श्राद्धकल्प तथा वर्णाश्रम धर्म सदाचार निरूपण तथा माहामोह की कथा, यह सब तीसरे अंश में बताया गया है, जो पापों का नाश करने वाला है।

भाग-चतुर्थ अंश

सूर्यवंश की पवित्र कथा, चन्द्रवंश का वर्णन तथा नाना प्रकार के राजाओं का वृतान्त चतुर्थ अंश के अन्दर है।

भाग-पंचम अंश

श्रीकृष्णावतार विषयक प्रश्न, गोकुल की कथा, बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण द्वारा पूतना आदि का वध, कुमारावस्था में अघासुर आदि की हिंसा, किशोरावस्था में कंस का वध, मथुरापुरी की लीला, तदनन्तर युवावस्था में द्वारका की लीलायें समस्त दैत्यों का वध, भगवान के प्रथक प्रथक विवाह, द्वारका में रहकर योगीश्वरों के भी ईश्वर जगन्नाथ श्रीकृष्ण के द्वारा शत्रुओं के वध के द्वारा पृथ्वी का भार उतारा जाना, और अष्टावक्र जी का उपाख्यान ये सब बातें पांचवें अंश के अन्तर्गत हैं।

भाग-छठा अंश

कलियुग का चरित्र चार प्रकार के महाप्रलय तथा केशिध्वज के द्वारा खाण्डिक्य जनक को ब्रह्मज्ञान का उपदेश इत्यादि छठा अंश कहा गया है।

उत्तरभाग

इसके बाद विष्णु पुराण का उत्तरभाग प्रारम्भ होता है, जिसमें शौनक आदि के द्वारा आदरपूर्वक पूछे जाने पर सूतजी ने सनातन विष्णुधर्मोत्तर नामसे प्रसिद्ध नाना प्रकार के धर्मों कथायें कही है, अनेकानेक पुण्यव्रत यम नियम धर्मशास्त्र अर्थशास्त्र वेदान्त ज्योतिष वंशवर्णन के प्रकरण स्तोत्र मन्त्र तथा सब लोगों का उपकार करने वाली नाना प्रकार की विद्यायें सुनायी गयीं है, यह विष्णुपुराण है, जिसमें सब शास्त्रों के सिद्धान्त का संग्रह हुआ है।

इसमे वेदव्यासजी ने वाराकल्प का वृतान्त कहा है, जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है, वे दोनों यहां मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है।

विष्णुपुराण अट्ठारह पुराणों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा प्राचीन है। यह श्री पराशर ऋषि द्वारा प्रणीत है। इसके प्रतिपाद्य भगवान विष्णु हैं, जो सृष्टि के आदिकारण, नित्य, अक्षय, अव्यय तथा एकरस हैं।

इस पुराण में आकाश आदि भूतों का परिमाण, समुद्र, सुर्य आदि का परिमाण, पर्वत, देवतादि की उत्पत्ति, मन्वन्तर, कल्प-विभाग, सम्पूर्ण धर्म एवं देवर्षि तथा राजर्षियों के चरित्र का विशद वर्णन है। भगवान विष्णु प्रधान होने के बाद भी यह पुराण विष्णु और शिव के अभिन्नता का प्रतिपादक है।

विष्णु पुराण में मुख्य रूप से श्रीकृष्ण चरित्र का वर्णन है, यद्यपि संक्षेप में राम कथा का उल्लेख भी प्राप्त होता है।

Description

श्रीविष्णुपुराण (Shri Vishnu Puran)  

परिचय:
श्रीविष्णुपुराण हिन्दू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्राचीन पुराण है। इसे विष्णु भक्तों का प्रमुख ग्रंथ माना जाता है। इसमें भगवान विष्णु की महिमा, सृष्टि की रचना, धर्म के सिद्धांत, अवतारों की कथा, और जीवन के आदर्शों का वर्णन है। इसकी रचना महर्षि पराशर ने की थी और इसका संवाद उन्होंने अपने पुत्र महर्षि वेदव्यास को सुनाया था।


मुख्य विषय-वस्तु:
श्रीविष्णुपुराण में कुल 6 खण्ड (अंश) होते हैं:

1. प्रथम अंश (सृष्टि खण्ड):

2. द्वितीय अंश (भूगोल खण्ड):

  • सप्तद्वीप, सप्तसमुद्र, और सप्तलोकों का विस्तार

  • पृथ्वी के भूगोल और ब्रह्माण्ड की संरचना

3. तृतीय अंश (वंश खण्ड):

4. चतुर्थ अंश (मन्वन्तर खण्ड):

  • 14 मन्वन्तरों का क्रम और उनके अधिपति

  • विभिन्न देवताओं और अवतारों का कार्य

5. पंचम अंश (कृष्ण चरित्र खण्ड):

  • श्रीकृष्ण भगवान का पूर्ण चरित्र

  • बाल लीलाएं, मथुरा गमन, रासलीला, कुरुक्षेत्र युद्ध आदि

  • धर्म की स्थापना हेतु कृष्णावतार का उद्देश्य

6. षष्ठ अंश (धर्म और मोक्ष खण्ड):

  • धर्म, अध्यात्म, योग, भक्ति और मोक्ष की शिक्षा

  • कलियुग के लक्षण और धर्म की रक्षा के उपाय

Additional information

Weight 0.4 g

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.

Related products