Description
यह पुराण मुख्यरूप से त्रिविक्रम भगवान् विष्णु के दिव्य माहात्म्य का व्याख्याता है। इसमें भगवान् वामन, नर-नारायण, भगवती दुर्गा के उत्तम चरित्र के साथ भक्त प्रह्लाद तथा श्रीदामा आदि भक्तों के बड़े रम्य आख्यान हैं। इसके अतिरिक्त, शिवजी की लीला-चरित्र, जीवमूत वाहन-आख्यान, दक्ष-यज्ञ-विध्वंस, हरि का कालरूप, कामदेव-दहन, अंधक-वध, लक्ष्मी-चरित्र, प्रेतोपाख्यान, विभिन्न व्रत, स्तोत्र और अन्त में विष्णुभक्ति के उपदेशों के साथ इस पुराण का उपसंहार हुआ है।
पुलस्त्यजी बोले – नारदजी ! मैंने आपसे इस अत्यन्त पावन पुराणका कथन किया है । इसको सुननेसे मनुष्य उत्तम यश और भक्तिसे सम्पन्न होकर विष्णुलोकको प्राप्त करता है । जैसे गड्गाजलमें स्त्रान करनेसे सारे पाप धुल जाते हैं, वैसे ही इस पुराणका श्रवण करनेसे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं ।
ब्रह्मन् ! वामनपुराणका श्रवण करनेवाले मनुष्यके शरीर एवं कुलमें रोग तथा अभिचार – कर्म ( मारण, मोहन, उच्चाटन आदि ) – से उत्पन्न घातक प्रभाव नहीं होता । विनयपूर्वक विष्णुका अर्चन करते हुए श्रद्धासे विधानके अनुसार नित्य इस पुराणके सुननेवाले मनुष्यके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे दक्षिणाके सहित अश्वमेध यज्ञ करने तथा सोना, भूमि, अश्व, गौ, हाथी तथा रथके दानका फल प्राप्त होता है । इस ( पुराण ) – का एक चरण ( भाग ) भी सुननेवाला पुरुष तथा स्त्री पृथ्वीमें पावन एवं अत्यन्त पुण्यवान् हो जाता है
इस पुराण में श्लोकों की संख्या दस हजार है, इस पुराण में पुराणों के पांचों लक्षणों अथवा वर्ण्य-विषयों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित का वर्णन है। सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है। बीच-बीच में अध्यात्म-विवेचन, कलिकर्म और सदाचार आदि पर भी प्रकाश डाला गया है।
Additional information
Weight | 1 kg |
---|
Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.
Reviews
There are no reviews yet.