श्रीमद्भगवतगीता के विश्वजनीन निर्देश/shrimadbhagwatgeeta ke vishavjaneen nirdesh

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Description

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagavad Gita) केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि एक विश्वव्यापी जीवन-दर्शन भी है। इसके उपदेश मानव मात्र के लिए हैं — न केवल किसी एक धर्म, जाति या राष्ट्र के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए। इसे “विश्वविज्ञानी ग्रंथ” (Universal Scripture) माना जाता है।

यहाँ श्रीमद्भगवद्गीता के विश्वविज्ञानी निर्देशों का हिंदी में वर्णन दिया गया है:


1. कर्मयोग का सिद्धांत (Duty without Attachment)

गीता में कहा गया है —
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”
(अध्याय 2, श्लोक 47)
अर्थ: मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह सिद्धांत केवल हिंदू धर्म के लिए नहीं, बल्कि सभी मनुष्यों के लिए जीवन की दिशा तय करता है। यह आधुनिक प्रबंधन और कार्यसंस्कृति में भी उपयोगी है।


2. आत्मा की अमरता (Immortality of Soul)

गीता के अनुसार आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है।
“न जायते म्रियते वा कदाचित्…”
(अध्याय 2, श्लोक 20)
यह सिद्धांत जीवन और मृत्यु की व्यापक समझ को दर्शाता है, जो हर संस्कृति में आत्मज्ञान के लिए प्रासंगिक है।


3. समत्व योग (Equality & Balance)

“समत्वं योग उच्यते”
(अध्याय 2, श्लोक 48)
अर्थ: सफलता या असफलता, सुख या दुख — इन सभी में समभाव रखना ही सच्चा योग है। यह मानसिक संतुलन का ऐसा निर्देश है जो हर व्यक्ति के लिए उपयोगी है, चाहे वह किसी भी देश, धर्म या जीवनस्थिति में हो।


4. सार्वभौमिक धर्म (Universal Dharma)

गीता धर्म को केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं करती, बल्कि धर्म को कर्तव्य, ईमानदारी, करुणा और आत्मनियंत्रण के रूप में देखती है — जो किसी भी सभ्यता में मान्य है।


5. मन का नियंत्रण (Control of Mind)

“उद्धरेदात्मनात्मानं…”
(अध्याय 6, श्लोक 5)
मनुष्य को अपने ही द्वारा स्वयं को ऊपर उठाना है। यह आत्मविकास का सिद्धांत है जो विश्व के किसी भी कोने में व्यक्ति के विकास के लिए अनिवार्य है।


6. ज्ञान, भक्ति और कर्म का समन्वय

गीता तीन मार्गों को बताती है —

  • ज्ञानयोग (Path of Knowledge)

  • भक्तियोग (Path of Devotion)

  • कर्मयोग (Path of Action)

ये तीनों मार्ग सभी मानव जाति के लिए हैं, जिससे कोई भी अपने स्वभाव के अनुसार आत्मसाक्षात्कार की ओर बढ़ सकता है।


निष्कर्ष (Conclusion):

श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेश जाति, धर्म, भाषा, समय और स्थान की सीमाओं से परे हैं। यह एक सार्वभौमिक मार्गदर्शक ग्रंथ है जो मानवता को आत्मज्ञान, शांति, संतुलन और कर्तव्य की ओर ले जाता है।

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