श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण/ Shrimad Dvei Bhagwat Mahapuran (Set of 2 Books)

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Description

श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण/ Shrimad Dvei Bhagwat Mahapuran (Set of 2 Books)

[सचित्र ,सरल हिन्दी-व्याख्यासहित]

यह पुराण परम पवित्र वेद की प्रसिद्ध श्रुतियों के अर्थ से अनुमोदित, अखिल शास्त्रों के रहस्यका स्रोत तथा आगमों में अपना प्रसिद्ध स्थान रखता है। यह सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, वंशानुकीर्ति, मन्वन्तर आदि पाँचों लक्षणों से पूर्ण हैं। पराम्बा भगवती के पवित्र आख्यानों से युक्त है। इस पुराण में लगभग 18000 श्लोक है।

एक बार भगवत्-अनुरागी तथा पुण्यात्मा महर्षियों ने श्री वेदव्यास के परम शिष्य सूतजी से प्रार्थना कि- हे ज्ञानसागर ! आपके श्रीमुख से विष्णु भगवान और शंकर के देवी चरित्र तथा अद्भुत लीलाएं सुनकर हम बहुत सुखी हुए। ईश्वर में आस्था बढ़ी और ज्ञान प्राप्त किया। अब कृपा कर मानव जाति को समस्त सुखों को उपलब्ध कराने वाले, आत्मिक शक्ति देने वाले तथा भोग और मोक्ष प्रदान कराने वाले पवित्रतम पुराण आख्यान सुनाकर अनुगृहीत कीजिए।

ज्ञानेच्छु और विनम्र महात्माओं की निष्कपट अभिलाषा जानकर महामुनि सूतजी ने अनुग्रह स्वीकार किया। उन्होंने कहा-जन कल्याण की लालसा से आपने बड़ी सुंदर इच्छा प्रकट की। मैं आप लोगों को उसे सुनाता हूँ। यह सच है कि श्री मद् देवी भागवत् पुराण सभी शास्त्रों तथा धार्मिक ग्रंथों में महान है। इसके सामने बड़े-बड़े तीर्थ और व्रत नगण्य हैं।

इस पुराण के सुनने से पाप सूखे वन की भांति जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे मनुष्य को शोक, क्लेश, दु:ख आदि नहीं भोगने पड़ते। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश के सामने अंधकार छंट जाता है, उसी प्रकार भागवत् पुराण के श्रवण से मनुष्य के सभी कष्ट, व्याधियां और संकोच समाप्त हो जाते हैं। महात्माओं ने सूतजी से भागवत् पुराण के संबंध में ये जिज्ञासाएं रखीं:

पवित्र श्रीमद् देवी भागवत् पुराण का आविर्भाव कब हुआ ?
इसके पठन-पाठन का समय क्या है ?
इसके श्रवण-पठन से किन-किन कामनाओं की पूर्ति होती है ?
सर्वप्रथम इसका श्रवण किसने किया ?
इसके पारायण की विधि क्या है ?

“तथा न गंगा न गया न काशी न नैमिषं न मथुरा न पुष्करम्।
पुनाति सद्य: बदरीवनं नो यथा हि देवीमख एष विप्रा:।”

गंगा, गया, काशी, नैमिषारण्य, मथुरा, पुष्कर और बदरीवन आदि तीर्थों की यात्रा से भी वह फल प्राप्त नहीं होता, जो नवाह्र पारायण रूप देवी भागवत श्रवण यज्ञ से प्राप्त होता है। सूतजी के अनुसार-आश्विन् मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को स्वर्ण सिंहासन पर श्रीमद् भागवत की प्रतिष्ठा कराकर ब्राह्मण को देने वाला देवी के परम पद को प्राप्त कर लेता है। इस पुराण की महिमा इतनी महान है कि नियमपूर्वक एक-आध श्लोक का पारायण करने वाला भक्त भी मां भगवती की कृपा प्राप्त कर लेता है।

देवी पुराण के पढ़ने एवं सुनने से भयंकर रोग, अतिवृष्टि, अनावृष्टि भूत-प्रेत बाधा, कष्ट योग और दूसरे आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आधिदैहिक कष्टों का निवारण हो जाता है।

सूतजी ने इसके लिए एक कथा का उल्लेख करते हुए कहा-वसुदेव जी द्वारा देवी भागवत पुराण को पारायण का फल ही था कि प्रसेनजित को ढूंढ़ने गए श्रीकृष्ण संकट से मुक्त होकर सकुशल घर लौट आए थे। इस पुराण के श्रवण से दरिद्र धनी, रोगी-नीरोगी तथा पुत्रहीन स्त्री पुत्रवती हो जाती है।

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र चतुर्वर्णों के व्यक्तियों द्वारा समान रूप से पठनीय एवं श्रवण योग्य यह पुराण आयु, विद्या, बल, धन, यश तथा प्रतिष्ठा देने वाला अनुपम ग्रंथ है।

यह पुराण श्रवण सब प्रकार के कष्टों का निवारण करके आत्मकल्याण करता है। अत: इसका पारायण सभी के लिए श्रेष्ठ एवं वरेण्य है।

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Weight 2 kg

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