Description
भक्ति-सन्दर्भ
इसमें भक्ति के स्वरूप, प्रकार, अंग और गोपानादि का वर्णन किया गया है। भक्ति है ईश्वर में परानुरक्ति। यह जीव की अपनी शक्ति नहीं, भगवान् की ह्लादिनी शक्ति की वृत्ति है। गुणातीत ह्लादिनी शक्ति की वृत्ति होने के कारण यह निर्गुण हैं, प्रपञ्चातीत है, भगवान् इसे जीव के चित्त में निक्षिप्त कर उसे आनन्दित करते हैं और स्वयं भी आनन्दित होते हैं।[1] भक्त्यानन्द भगवान् के स्वरूपानन्द से भी श्रेष्ठ है।
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