श्रीगर्ग – संहिता/ Garg Sanhita
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Description
गर्ग संहिता गर्ग मुनि की रचना है। इस संहिता में मधुर श्रीकृष्ण लीला परिपूर्ण है। इसमें राधाजी की माधुर्य-भाव वाली लीलाओं का वर्णन है। श्रीमद् भगवद्गीता में जो कुछ सूत्ररूप से कहा गया है, गर्ग-संहिता में उसी का बखान किया गया है। अतः यह भागवतोक्त श्रीकृष्णलीला का महाभाष्य है।
भगवान श्रीकृष्ण की पूर्णाता के संबंध में गर्ग ऋषि ने कहा है:
यस्मिन सर्वाणि तेजांसि विलीयन्ते स्वतेजसि।
त वेदान्त परे साक्षात् परिपूर्णं स्वयम्।।
जबकि श्रीमद्भागवत में इस संबंध में महर्षि व्यास ने मात्र कृष्णस्तु भगवान स्वयम् — इतना ही कहा है।
श्रीकृष्ण की मधुरली की रचना हुई दिव्य रस के द्वारा उस रस का रास में प्रकाश हुआ है। श्रीमद्भागवत् में उस रास के केवल एक बार का वर्णन पाँच अध्यायों में किया गया है; जबकि इस गर्ग-संहिता में वृन्दावन में, अश्व खण्ड के प्रभाव सम्मिलन के समय और उसी अश्वमेध खण्डके दिग्विजय के अनन्तर लौटते समय तीन बार कई अध्यायों में बड़ा सुन्दर वर्णन है। इसके माधुर्य ख्ण्ड में विभिन्न गोपियों के पूर्वजन्मों का बड़ा ही सुन्दर वर्णन है और भी बहुत-सी नयी कथाएँ हैं। यह संहिता भक्तों के लिये परम समादर की वस्तु है; क्योंकि इसमें श्रीमद्भागवत के गूढ़ तत्त्वों का स्प्ष्ट रूप में उल्लेख है।
गर्ग संहिता के निम्नलिखित खण्ड (अध्याय) हैं-
गोलोक खण्ड
वृन्दावन खण्ड
गिरिराज खण्ड
माधुर्य खण्ड
मथुरा खण्ड
द्वारका खण्ड
विश्वजीत खण्ड
बलभद्र खण्ड
विज्ञान खण्ड
अश्वमेध खण्ड
गर्ग संहिता में श्रीकृष्ण चरित्र का विस्तार से निरुपण किया गया है। इस ग्रन्थ में तो यहाँ तक कहा गया है, कि भगवान श्री कृष्ण और राधाजी का विवाह हुआ था। गर्ग संहिता में ज्योतिष शरीर के अंगों की संरचना के आधार पर ज्योतिष फल विवेचन किया गया है।
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