Description
*एक महान भक्त के भक्तिभाव को कोई भक्त ही वेहतर अभिव्यक्त कर सकता है और यह दुर्लभ संयोंग इस अनुपम ग्रन्थ में बना,इस संयोग से भक्ति की ऐसी धारा प्रस्फुठित हुई जिसे पढ़कर आप स्वम को भक्ति से ओत-प्रोत पाएंगे। *महाराज श्री इसे 5 भागो में लिखा है।इसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि तमिल,तेलगु,गुजराती,मराठी आदि भाषाओ में भी अनुवाद हुआ
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