विज्ञान और आध्यात्मिकता​/ Vignyan-aur Aadhyatmikt

30.00

स्वामी विवेकानंद ने विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच संबंध पर गहन विचार प्रस्तुत किए हैं। उनके अनुसार, विज्ञान और आध्यात्मिकता एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों का उद्देश्य सत्य की खोज है—विज्ञान भौतिक जगत में सत्य की खोज करता है, जबकि आध्यात्मिकता आत्मा और चेतना के स्तर पर।

स्वामी विवेकानंद ने वेदांत के सिद्धांतों को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने पश्चिमी वैज्ञानिकों, जैसे निकोला टेस्ला, के साथ संवाद किया और उन्हें प्राण (ऊर्जा) और आकाश (पदार्थ) जैसे वेदांत के मूलभूत तत्वों से परिचित कराया। हालांकि टेस्ला इन अवधारणाओं को गणितीय रूप से प्रमाणित नहीं कर सके, लेकिन यह संवाद विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच की खाई को पाटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य मानव व्यक्तित्व का पूर्ण विकास है, जिसमें बौद्धिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास शामिल है। उन्होंने कहा, “शिक्षा वह नहीं है जो हमें जानकारी भर दे, बल्कि यह जीवन-निर्माण, मनुष्य-निर्माण, चरित्र-निर्माण और विचारों का समावेश है। 

उन्होंने यह भी माना कि विज्ञान और धर्म दोनों का अंतिम लक्ष्य मानवता की भलाई है, और दोनों को एक-दूसरे के विरोधी के रूप में नहीं, बल्कि सहयोगी के रूप में देखा जाना चाहिए। उनके विचारों में, वेदांत और विज्ञान के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 

स्वामी विवेकानंद के ये विचार आज भी प्रासंगिक हैं और विज्ञान तथा आध्यात्मिकता के बीच संतुलन स्थापित करने में सहायक हो सकते हैं।

Description

Vignyan-aur-Aadhyatmikt

Swami Vivekananda articulated profound insights on the relationship between science and spirituality, viewing them as complementary pursuits in the quest for truth. He believed that while science explores the external, material world, spirituality delves into the inner realm of consciousness and the soul. Vivekananda emphasized that both domains aim to uncover underlying realities and should not be seen as opposing forces. He stated, “If there is anything against science, it is not religion. And you should reject it.”

He advocated for a harmonious integration of Western scientific knowledge with Vedantic wisdom, asserting that such a synthesis could lead to holistic understanding and progress. Vivekananda’s teachings suggest that material science contributes to worldly prosperity, whereas spiritual science offers insights into eternal life. He warned against an overreliance on material science alone, highlighting the importance of balancing technological advancement with spiritual growth to avoid societal pitfalls such as undue competition and ambition. 

Vivekananda’s vision extended to the application of scientific methods to the study of religion, proposing that spiritual experiences could be systematically explored and understood. He remarked, “All science has its particular methods; so has the science of religion.” This perspective underscores his belief in the universality of the search for knowledge, whether through scientific inquiry or spiritual practice 

In summary, Swami Vivekananda championed the integration of science and spirituality, advocating that their combined wisdom is essential for the comprehensive development of individuals and societie

स्वामी विवेकानंद ने विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच संबंध पर गहन विचार प्रस्तुत किए हैं। उनके अनुसार, विज्ञान और आध्यात्मिकता एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों का उद्देश्य सत्य की खोज है—विज्ञान भौतिक जगत में सत्य की खोज करता है, जबकि आध्यात्मिकता आत्मा और चेतना के स्तर पर।

स्वामी विवेकानंद ने वेदांत के सिद्धांतों को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने पश्चिमी वैज्ञानिकों, जैसे निकोला टेस्ला, के साथ संवाद किया और उन्हें प्राण (ऊर्जा) और आकाश (पदार्थ) जैसे वेदांत के मूलभूत तत्वों से परिचित कराया। हालांकि टेस्ला इन अवधारणाओं को गणितीय रूप से प्रमाणित नहीं कर सके, लेकिन यह संवाद विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच की खाई को पाटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य मानव व्यक्तित्व का पूर्ण विकास है, जिसमें बौद्धिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास शामिल है। उन्होंने कहा, “शिक्षा वह नहीं है जो हमें जानकारी भर दे, बल्कि यह जीवन-निर्माण, मनुष्य-निर्माण, चरित्र-निर्माण और विचारों का समावेश है। 

उन्होंने यह भी माना कि विज्ञान और धर्म दोनों का अंतिम लक्ष्य मानवता की भलाई है, और दोनों को एक-दूसरे के विरोधी के रूप में नहीं, बल्कि सहयोगी के रूप में देखा जाना चाहिए। उनके विचारों में, वेदांत और विज्ञान के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 

स्वामी विवेकानंद के ये विचार आज भी प्रासंगिक हैं और विज्ञान तथा आध्यात्मिकता के बीच संतुलन स्थापित करने में सहायक हो सकते हैं।

 

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