रस और आनन्द/ Ras our Aanand

35.00

श्रीभाईजी जैसी विभूतियाँ युगों-युगों में इस धरा पर आती है| उनकी स्थिति अनिर्वचनीय है| ऐसे अप्रतिम संत के मुखारविंद से नि:सृत वाणी को पुस्तकाकार रूप में करने के लिए श्रद्धालु साधकों और प्रेमीजनों का बहुत वर्षों से निरंतर आग्रह था| आपके सामने यह पुस्तक प्रतुत है|

Description

श्रीभाईजी जैसी विभूतियाँ युगों-युगों में इस धरा पर आती है| उनकी स्थिति अनिर्वचनीय है| ऐसे अप्रतिम संत के मुखारविंद से नि:सृत वाणी को पुस्तकाकार रूप में करने के लिए श्रद्धालु साधकों और प्रेमीजनों का बहुत वर्षों से निरंतर आग्रह था| आपके सामने यह पुस्तक प्रतुत है|

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