रसिकवर श्री जमुनादासजी कृत वाणी खण्ड १- २ / Rasikvar shri Jamunadas ji Krit Vani part 1-2

600.00

रसिकवर श्री जमुनादासजी की ग्रंथावली में उनके चार अष्टयाम  और एक गुरु परम्परा संग्रहित  है।

रसिक अनन्य महानुभावो द्वारा रचित पदो था छंदो का एक अनुठा संग्रह है । श्री हरिदासी परंपरा में इस प्रकार की प्रथम रचना है।

श्री गुरु परम्परा में श्री स्वामी हरिदासजी की परम्परा का विस्तार से वर्णन है।

श्री निम्बार्क सम्प्रदाय के ग्यारहवे आचार्य श्री राधाचरण दास जी महाराज हुए। उन्हीं के कृपा पात्र/ शिष्य/ पूज्य रासिक सन्त सदगुरू देव बाबा श्री अलबेलीशरण जी महाराज हैं।

पूज्यवर रसिक संत सदगुरुदेव बाबा श्री अलबेलीशरण जी महाराज भी महापुरुष है। जिनका जन्म भक्तों के घर मे हुआ, जहाॅ कीर्तन भजन भाव रूप सम्पत्ति विरासत रूप में उन्हें सहज प्राप्त होती गयी और वे साधन सिद्ध रूप लक्ष्य की ओर उत्तरोत्तर बढ़ते गये। उनका जन्म यदुवंशीय क्षत्रीय ठाकुर समाज में हुआ। श्री कृष्ण इस समाज के पूर्व पुरुष है। उनका जन्म चोली गाॅव में नर्मदा तट पर म .प्र. में ननिहाल में गोधूली बेला में हरियाली श्रावणी अमावस्या बुधवार सम्वत् 1995 विक्रम तदनुसार 27 जुलाई सन 1938 में हूआ।17,5 की उम्र में सन 1956 में होली के दूज के दिन घर त्याग किया और वृंदावन की कुंजों व गुफा में रह कर अहर्निश भजन किया। साधना काल की स्थिती में यमुना किनारे व पेड़ों के नीचे रह कर वे निरन्तर नाम जप व स्मरण करते थे।वे पुराने ग्रन्थों का पुनः प्रकाशन कर अपने परम्परा के महनीय ग्रन्थों को साधकों के लिये, परमार्थ पथ लक्ष्य प्राप्त करने के लिये कृपा प्रसाद रूप में दे रहे हैं।निंदा स्तुति छल कपट पर दोष देखना वे नही जानते हैं।शील मृदुल संकोची दयावान परोपकारी उनका स्वभाव है।सन 1995 से वर्तमान में वे श्री गोरे लाल जी की कुंज में रह रहे है।उन्होंने अपने जन्म स्थान पर 450 वर्ष पुराने श्री राधा विनोद बिहारी जी के मंदिर का नव निर्माण सन 2015 में कर नवीन श्री स्वामी हरिदास जी व अष्टाचार्यों को विराजित किया है।सद्गुरुदेव जहाँ पैदा हुए वहां पर पहले से ही श्री ललिता जी सहित श्री प्रिया प्रियतम विराजित थे जो सखी सम्प्रदाय के अन्तर्गत है।

–  गोस्वामी तुलसीदास जी रसिक संतो के लिए  कहते हैें –

 धन्य है वृन्दावन , धन्य है वह रज जहाँ पर हमारे प्यारे और प्यारी जू के चरण पड़े है, ये भूमि श्री राधारानी की भूमि है।

यदि हम वृन्दावन में प्रवेश करते है तो समझ लेना कि ये श्रीराधारानी की कृपा है , जो हमें वृन्दावन आने का न्यौता मिला।
जो रज ब्रज वृन्दावन माहि ,

वैकुंठादिलोक में नाहीं।

जो अधिकारी होय तो पावे ,

बिन अधिकारी भए न आवे।।

Description

रसिकवर श्री जमुनादासजी कृत वाणी खण्ड १- २ / Rasikvar shri Jamunadas ji Krit Vani part 1-2

अष्टयाम समुच्चय

संपादक -बाबा अलबेलीशरण

 

रसिकवर श्री जमुनादासजी की ग्रंथावली में उनके चार अष्टयाम  और एक गुरु परम्परा संग्रहित  है।

रसिक अनन्य महानुभावो द्वारा रचित पदो और छंदो का एक अनुठा संग्रह है । श्री हरिदासी परंपरा में इस प्रकार की प्रथम रचना है।

श्री गुरु परम्परा में श्री स्वामी हरिदासजी की परम्परा का विस्तार से वर्णन है।

श्री निम्बार्क सम्प्रदाय के ग्यारहवे आचार्य श्री राधाचरण दास जी महाराज हुए। उन्हीं के कृपा पात्र/ शिष्य/ पूज्य रासिक सन्त सदगुरू देव बाबा श्री अलबेलीशरण जी महाराज हैं।

पूज्यवर रसिक संत सदगुरुदेव बाबा श्री अलबेलीशरण जी महाराज भी महापुरुष है। जिनका जन्म भक्तों के घर मे हुआ, जहाॅ कीर्तन भजन भाव रूप सम्पत्ति विरासत रूप में उन्हें सहज प्राप्त होती गयी और वे साधन सिद्ध रूप लक्ष्य की ओर उत्तरोत्तर बढ़ते गये। उनका जन्म यदुवंशीय क्षत्रीय ठाकुर समाज में हुआ। श्री कृष्ण इस समाज के पूर्व पुरुष है। उनका जन्म चोली गाॅव में नर्मदा तट पर म .प्र. में ननिहाल में गोधूली बेला में हरियाली श्रावणी अमावस्या बुधवार सम्वत् 1995 विक्रम तदनुसार 27 जुलाई सन 1938 में हूआ।17,5 की उम्र में सन 1956 में होली के दूज के दिन घर त्याग किया और वृंदावन की कुंजों व गुफा में रह कर अहर्निश भजन किया। साधना काल की स्थिती में यमुना किनारे व पेड़ों के नीचे रह कर वे निरन्तर नाम जप व स्मरण करते थे।वे पुराने ग्रन्थों का पुनः प्रकाशन कर अपने परम्परा के महनीय ग्रन्थों को साधकों के लिये, परमार्थ पथ लक्ष्य प्राप्त करने के लिये कृपा प्रसाद रूप में दे रहे हैं।निंदा स्तुति छल कपट पर दोष देखना वे नही जानते हैं।शील मृदुल संकोची दयावान परोपकारी उनका स्वभाव है।सन 1995 से वर्तमान में वे श्री गोरे लाल जी की कुंज में रह रहे है।उन्होंने अपने जन्म स्थान पर 450 वर्ष पुराने श्री राधा विनोद बिहारी जी के मंदिर का नव निर्माण सन 2015 में कर नवीन श्री स्वामी हरिदास जी व अष्टाचार्यों को विराजित किया है।सद्गुरुदेव जहाँ पैदा हुए वहां पर पहले से ही श्री ललिता जी सहित श्री प्रिया प्रियतम विराजित थे जो सखी सम्प्रदाय के अन्तर्गत है।

–  गोस्वामी तुलसीदास जी रसिक संतो के लिए  कहते हैें –

 धन्य है वृन्दावन , धन्य है वह रज जहाँ पर हमारे प्यारे और प्यारी जू के चरण पड़े है, ये भूमि श्री राधारानी की भूमि है।

यदि हम वृन्दावन में प्रवेश करते है तो समझ लेना कि ये श्रीराधारानी की कृपा है , जो हमें वृन्दावन आने का न्यौता मिला।
जो रज ब्रज वृन्दावन माहि ,

वैकुंठादिलोक में नाहीं।

जो अधिकारी होय तो पावे ,

बिन अधिकारी भए न आवे।।

Additional information

Weight 0.5 g

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “रसिकवर श्री जमुनादासजी कृत वाणी खण्ड १- २ / Rasikvar shri Jamunadas ji Krit Vani part 1-2”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related products