योग दर्शन/Yog Darsan

45.00

Description

योग-_दर्शन.  यह अगर जम जाय न, तो सुनते-सुनते बात बन जाय और अगर नहीं जमता तो बार-बार सुनें, बहुत फायदा होगा । धनवान या निर्धन होना, विद्वान या अविद्वान होना, सुंदर या कुरूप होना- यह शाश्वत नहीं हैं । सुरूपता या कुरुपता यह 25 -50 साल के खिलवाड़ में दिखती है । शाश्वत तो आत्मा है और उस पर कुरूपता का प्रभाव है न स्वरूपता का, न विद्वत्ता का प्रभाव है न आविद्वत्ता का । तरंग चाहे कितनी भी बड़ी हो लेकिन है तो अंत में सागर में ही लीन होने वाली और चाहे कितनी भी छोटी हो लेकिन है तो पानी ही । ऐसे ही बाहर से आदमी चाहे कितना भी बड़ा या छोटा दिखता हो किंतु उसका वास्तविक मूल तो चैतन्य परमात्मा ही है । उस चेतन परमात्मा के ज्ञान को प्रकट करने का काम यह ग्रंथ करता है

 

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.