Description
धर्मसम्राट स्वामी करपात्री (१९०७ – १९८२) भारत के एक सन्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं राजनेता थे। उनका मूल नाम हरि नारायण ओझा था। वे दसनामी परम्परा के संन्यासी थे। दीक्षा के उपरान्त उनका नाम ‘हरिहरानन्द सरस्वती’ था किन्तु वे ‘करपात्री’ नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुलि का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे (कर = हाथ , पात्र = बर्तन, करपात्री = हाथ ही बर्तन हैं जिसके) । उन्होने अखिल भारतीय़ रामराज्य परिषद नामक राजनैतिक दल भी बनाया था। धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें ‘धर्मसम्राट’ की उपाधि प्रदान की गई।
स्वामी जी की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि एक बार कोई चीज पढ़ लेने के वर्षों बाद भी बता देते थे कि ये अमुक पुस्तक के अमुक पृष्ठ पर अमुक रूप में लिखा हुआ है। आज जो रामराज्य सम्बन्धी विचार गांधी दर्शन तक में दिखाई देते हैं, धर्म संघ, रामराज्य परिषद्, राममंदिर आन्दोलन, धर्म सापेक्ष राज्य, आदि सभी के मूल में स्वामी जी ही हैं।
मार्क्सवाद
कार्ल मार्क्स की साम्यवादी विचारधारा ही मार्क्सवादी विचारधारा के नाम से जानी जाती है। मार्क्स एक समाजवादी विचारक थे और यथार्थ पर आधारित समाजवादी विचारक के रूप में जाने जाते हैं। सामाजिक राजनीतिक दर्शन में मार्क्सवाद (Marxism) उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व द्वारा वर्गविहीन समाज की स्थापना के संकल्प की साम्यवादी विचारधारा है
मार्क्सवाद मानव सभ्यता और समाज को हमेशा से दो वर्गों -शोषक और शोषित- में विभाजित मानता है।
मार्क्सवाद के अनुसार सामाजिक संरचना की आर्थिक व्याख्या करने वाला यह प्रमुख सिद्धांत है। यह सिद्धांत उन्नीसवीं शताब्दी के बाद लागू होता है। उससे पहले इस विचारधारा के होने या पाए जाने के कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं। आर्थिक रुप से शोषण करने वालों (शोषक)के खिलाफ़ आवाज उठाने में मार्क्सवाद का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
रामराज्य
हिन्दु संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्शासन रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में रामराज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के रुपक (प्रतीक) के रामराज्य, लोकतंन्त्र का परिमार्जित रूप माना जा सकता है। वैश्विक स्तर पर रामराज्य की स्थापना गांधीजी की चाह थी। गांधीजी ने भारत में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद गा्रम स्वराज के रूप में रामराज्य की कल्पना की थी।
वाल्मिकी रामायण में भरत जी रामराज्य के विलक्षण प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहते हैं, “राघव! आपके राज्य पर अभिषिक्त हुए एक मास से अधिक समय हो गया। तब से सभी लोग निरोग दिखाई देते हैं। बूढ़े प्राणियों के पास भी मृत्यु नहीं फटकती है। स्त्रियां बिना कष्ट के प्रसव करती हैं। सभी मनुष्यों के शरीर हृष्ट–पुष्ट दिखाई देते हैं। राजन! पुरवासियों में बड़ा हर्ष छा रहा है। मेघ अमृत के समान जल गिराते हुए समय पर वर्षा करते हैं। हवा ऐसी चलती है कि इसका स्पर्श शीतल एवं सुखद जान पड़ता है। राजन नगर तथा जनपद के लोग इस पुरी में कहते हैं कि हमारे लिए चिरकाल तक ऐसे ही प्रभावशाली राजा रहें।
धर्मसम्राट् ब्रह्मलीन स्वामी श्री करपात्री जी महाराज द्वारा प्रणीत यह पुस्तक भारतीय धर्म-दर्शन की निधि है। इसमें स्वामीजी ने पाश्चात्त्य दार्शनिकों, राजनीतिज्ञों की जीवनी, उनका समय, मत-निरूपण, भारतीय ऋषियों से उनकी तुलना, विकासवाद का खण्डन, ईश्वरवाद का मण्डन, मार्क्सवाद का प्रबल शास्त्रीय आलोक में विरोध तथा न्याय और वेदान्त के सिद्धान्त का विस्तार से प्रतिपादन किया है। यह राजनीति और दर्शन के विश्वकोश के रूप में आदरणीय और मननीय ग्रन्थ है।
Additional information
Weight | 1 g |
---|
Code of destiny –
I am extremely impressed along with your writing skills and also with the format for your blog. Is that this a paid topic or did you customize it yourself? Anyway keep up the nice high quality writing, it’s uncommon to look a nice weblog like this one these days!