माँ शारदा देवी/ Maa Sarada Devi

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माँ शारदा देवी 

माँ शारदा देवी, जिन्हें श्री श्री माँ के नाम से भी जाना जाता है, महान संत एवं संत रामकृष्ण परमहंस की धर्मपत्नी थीं। वे एक आध्यात्मिक गुरू, आदर्श पत्नी और करुणामयी माँ के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म 22 दिसंबर 1853 को पश्चिम बंगाल के जयारामबटी गाँव में हुआ था।

जीवन परिचय

माँ शारदा देवी का विवाह कम उम्र में ही श्री रामकृष्ण परमहंस से हो गया था। हालाँकि, उनका रिश्ता सांसारिक दंपति जैसा न होकर, एक आध्यात्मिक संगति का प्रतीक था। श्री रामकृष्ण ने उन्हें दिव्य माता के रूप में देखा और उन्होंने भी स्वयं को समस्त मानवता की माँ के रूप में स्थापित किया।

आध्यात्मिक योगदान

श्री रामकृष्ण परमहंस के महासमाधि लेने के बाद, माँ शारदा देवी ने उनके अनुयायियों का मार्गदर्शन किया। वे प्रेम, करुणा और सेवा की मूर्ति थीं। उन्होंने अपने जीवन में सरलता, सहिष्णुता और त्याग का परिचय दिया। स्वामी विवेकानंद सहित कई शिष्यों ने उनसे आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की।

उपदेश और शिक्षाएँ

माँ शारदा देवी का जीवन एक प्रेरणा है। उन्होंने सिखाया कि सच्ची भक्ति और प्रेम ही जीवन का सार है। उनके प्रसिद्ध कथनों में से एक है—
“अगर तुम किसी को प्रेम नहीं कर सकते, तो कम से कम उसे नुकसान भी मत पहुँचाओ।”

महाप्रयाण

माँ शारदा देवी ने 21 जुलाई 1920 को इस नश्वर संसार को त्याग दिया, लेकिन उनकी शिक्षाएँ आज भी लाखों भक्तों का मार्गदर्शन करती हैं।

माँ शारदा देवी का जीवन नारी सशक्तिकरण, प्रेम और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है। वे आज भी अपने भक्तों के हृदय में जीवित हैं।

Description

 Maa Sarada Devin

Maa Sarada Devi (1853–1920) was the spiritual consort of Sri Ramakrishna Paramahamsa and a revered saint in the Hindu tradition. She is often regarded as the Holy Mother (Sri Sri Ma) and played a crucial role in spreading Ramakrishna’s teachings.

Born in Jayrambati, West Bengal, Sarada Devi led a life of devotion, humility, and selfless service. She exemplified unconditional love, compassion, and spiritual wisdom, guiding countless disciples, including Swami Vivekananda and other monks of the Ramakrishna Order. Despite facing hardships, she maintained serenity and faith, inspiring people to lead a life of righteousness and devotion.

Maa Sarada Devi emphasized the importance of simplicity, forbearance, and selfless love, teaching that all religions lead to the same truth. She remains a spiritual guide for millions, with her teachings continuing to inspire seekers worldwide

माँ शारदा देवी 

माँ शारदा देवी, जिन्हें श्री श्री माँ के नाम से भी जाना जाता है, महान संत एवं संत रामकृष्ण परमहंस की धर्मपत्नी थीं। वे एक आध्यात्मिक गुरू, आदर्श पत्नी और करुणामयी माँ के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म 22 दिसंबर 1853 को पश्चिम बंगाल के जयारामबटी गाँव में हुआ था।

जीवन परिचय

माँ शारदा देवी का विवाह कम उम्र में ही श्री रामकृष्ण परमहंस से हो गया था। हालाँकि, उनका रिश्ता सांसारिक दंपति जैसा न होकर, एक आध्यात्मिक संगति का प्रतीक था। श्री रामकृष्ण ने उन्हें दिव्य माता के रूप में देखा और उन्होंने भी स्वयं को समस्त मानवता की माँ के रूप में स्थापित किया।

आध्यात्मिक योगदान

श्री रामकृष्ण परमहंस के महासमाधि लेने के बाद, माँ शारदा देवी ने उनके अनुयायियों का मार्गदर्शन किया। वे प्रेम, करुणा और सेवा की मूर्ति थीं। उन्होंने अपने जीवन में सरलता, सहिष्णुता और त्याग का परिचय दिया। स्वामी विवेकानंद सहित कई शिष्यों ने उनसे आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की।

उपदेश और शिक्षाएँ

माँ शारदा देवी का जीवन एक प्रेरणा है। उन्होंने सिखाया कि सच्ची भक्ति और प्रेम ही जीवन का सार है। उनके प्रसिद्ध कथनों में से एक है—
“अगर तुम किसी को प्रेम नहीं कर सकते, तो कम से कम उसे नुकसान भी मत पहुँचाओ।”

महाप्रयाण

माँ शारदा देवी ने 21 जुलाई 1920 को इस नश्वर संसार को त्याग दिया, लेकिन उनकी शिक्षाएँ आज भी लाखों भक्तों का मार्गदर्शन करती हैं।

माँ शारदा देवी का जीवन नारी सशक्तिकरण, प्रेम और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है। वे आज भी अपने भक्तों के हृदय में जीवित हैं।

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