महाभारत हिन्दी अनुवादसहित – छः खण्ड/ Shri Maha bharat Hindi Anuvad Sahit- Set of 6 Books

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महर्षि वेदव्यास रचित सभी खंडो को पंडित रामनारायण दत्त ने सरल भाषा में अनुवाद किया है जिसको यह प्रस्तुत किया है।

महाभारत आर्य-संस्कृति तथा भारतीय सनातनधर्मका एक अत्यन्त आदरणीय और महान प्रमुख ग्रन्थ है। यह अनन्त अमूल्य रत्नोंका अपार भण्डार है।

भगवान् वेदव्यास स्वयं कहते हैं कि ‘इस महाभारत में मैंने वेदोंके रहस्य और विस्तार, उपनिषदों के सम्पूर्ण सार, इतिहास-पुराणोंके उन्मेष और निमेष,चातुर्वर्ण्य के विधान, पुराणों के आशय, ग्रह-नक्षत्र-तारा आदिके परिमाण, न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, दान, पाशुपत ( अन्तर्यामीकी महिमा), तीर्थों, पुण्य देशों, नदियों, पर्वतों, वनों तथा समुद्रोंका भी वर्णन किया है।’

अतएव महाभारत महाकाव्य है, गूढ़ार्थमय ज्ञान-विज्ञान शास्त्र है, धर्मग्रन्थ है, राजनीतिक दर्शन है, निष्काम कर्मयोग-दर्शन है, भक्ति-शास्त्र है, अध्यात्म शास्त्र है, आर्यजातिका इतिहास है और सर्वार्थसाधक तथा सर्वशास्त्र संग्रह है। सबसे अधिक महत्त्व की बात तो यह है कि इसमें एक, अद्वितीय, सर्वज्ञ, सर्वशक्ति मान्, सर्वलोकमहेश्वर, परमयोगेश्वर, अचिन्त्यानन्त गुणगणसम्पन्न, सृष्टि-स्थिति प्रलयकारी, विचित्र लीलाविहारी, भक्त-भक्तिमान्, भक्त-सर्वस्व, निखिलरसामृतसिन्धु, अनन्तप्रेमाधार, प्रेमधनविग्रह, सच्चिदानन्दघन, वासुदेव भगवान श्रीकृष्णके गुण-गौरवका मधुर गान है। इसकी महिमा अपार है। औपनिषद ऋषिने भी इतिहास-पुराणको पञ्चम वेद बताकर महाभारतकी सर्वोपरि महत्ता स्वीकार की है।

इस महाभारतके हिंदीमें कई अनुवाद इससे पहले प्रकाशित हो चुके हैं, परंतु इस समय संस्कृत मूल तथा हिंदी अनुवादसहित सम्पूर्ण ग्रन्थ शायद उपलब्ध नहीं है। मूल तथा हिंदी अनुवाद पृथक्-पृथक् तो प्राप्त होते हैं, परंतु उनका मूल्य बहुत है।

इसीलिये महाभारतका महत्त्व समझनेवाले प्रेमी तथा उदाराशय सज्जनोंका बहुत दिनों से यह आग्रह था कि गीताप्रेसके द्वारा मूल संस्कृत एवं हिंदी अनुवाद सहित सम्पूर्ण महाभारत प्रकाशित किया जाय। इसके लिये बहुत दिनोंसे प्रयास भी चल रहा था। कई बार योजनाएँ भी बनायी गयीं: परंतु सत्कार्य प्रारम्भका पुण्य दिवस तभी प्राप्त होता है, जब भगवत्कृपासे वैसा अवसर प्राप्त हो जाता है।

बहुत दिनोंके प्रयत्न के पश्चात् अब वह सुअवसर आया है और महाभारत का यह प्रथम खण्ड आपके हाथोंमें उपस्थित है। महाभारतमें आया है कि भगवान् व्यासदेवने साठ लाख श्लोकोंकी एक महाभारत-संहिताका निर्माण किया था। उस समय महान् ग्रन्थके चार छोटे बड़े संस्करण थे। इनमें पहला तीस लाख श्लोकोंका था, जिसे नारदजीने देवलोकमें देवताओंको सुनाया था। दूसरा पंद्रह लाख श्लोकोंका था, जिसको देवल और असित ऋषिने पितृलोकमें पितृगणोंको सुनाया था। तीसरा जो चौदह लाख श्लोकोंका था, शुकदेवजीके द्वारा गन्धर्वो, यक्षों आदिको सुनाया गया और शेष एक लाख इलोकोंके चौथे संस्करणका प्रचार मनुष्य लोक में हुआ |

महाभारत भारतीय संस्कृति का, आर्य सनातन-धर्म का अद्भुत महाग्रंथ है। इसे पंचम वेद भी कहा जाता है। इस महाग्रंथ में उपनिषदों का सार, इतिहास, पुराणों का उन्मेष, निमेष, चतुर्वर्ण का विधान, पुराणों का आशय, ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि का परिमाण, तीर्थों, पुण्य देशों, नदियों, पर्वतों, समुद्रों तथा वनों का वर्णन होने के कारण यह अनन्त गूढ़ गुह्य रत्नों का भण्डार है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें निखिल रसामृत-सिन्धु, अनन्त प्रेमाधार भगवान् श्रीकृष्ण के गुण-गौरव का गान है। छः खण्डों में प्रकाशित यह ग्रन्थ-रत्न हिन्दू संस्कृति के अध्येताओं-हेतु मननीय और संग्रहणीय है। सचित्र, सजिल्द।

Description

महर्षि वेदव्यास रचित सभी खंडो को पंडित रामनारायण दत्त ने सरल भाषा में अनुवाद किया है जिसको यह प्रस्तुत किया है।

महाभारत आर्य-संस्कृति तथा भारतीय सनातनधर्मका एक अत्यन्त आदरणीय और महान प्रमुख ग्रन्थ है। यह अनन्त अमूल्य रत्नोंका अपार भण्डार है।

भगवान् वेदव्यास स्वयं कहते हैं कि ‘इस महाभारत में मैंने वेदोंके रहस्य और विस्तार, उपनिषदों के सम्पूर्ण सार, इतिहास-पुराणोंके उन्मेष और निमेष,चातुर्वर्ण्य के विधान, पुराणों के आशय, ग्रह-नक्षत्र-तारा आदिके परिमाण, न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, दान, पाशुपत ( अन्तर्यामीकी महिमा), तीर्थों, पुण्य देशों, नदियों, पर्वतों, वनों तथा समुद्रोंका भी वर्णन किया है।’

अतएव महाभारत महाकाव्य है, गूढ़ार्थमय ज्ञान-विज्ञान शास्त्र है, धर्मग्रन्थ है, राजनीतिक दर्शन है, निष्काम कर्मयोग-दर्शन है, भक्ति-शास्त्र है, अध्यात्म शास्त्र है, आर्यजातिका इतिहास है और सर्वार्थसाधक तथा सर्वशास्त्र संग्रह है। सबसे अधिक महत्त्व की बात तो यह है कि इसमें एक, अद्वितीय, सर्वज्ञ, सर्वशक्ति मान्, सर्वलोकमहेश्वर, परमयोगेश्वर, अचिन्त्यानन्त गुणगणसम्पन्न, सृष्टि-स्थिति प्रलयकारी, विचित्र लीलाविहारी, भक्त-भक्तिमान्, भक्त-सर्वस्व, निखिलरसामृतसिन्धु, अनन्तप्रेमाधार, प्रेमधनविग्रह, सच्चिदानन्दघन, वासुदेव भगवान श्रीकृष्णके गुण-गौरवका मधुर गान है। इसकी महिमा अपार है। औपनिषद ऋषिने भी इतिहास-पुराणको पञ्चम वेद बताकर महाभारतकी सर्वोपरि महत्ता स्वीकार की है।

इस महाभारतके हिंदीमें कई अनुवाद इससे पहले प्रकाशित हो चुके हैं, परंतु इस समय संस्कृत मूल तथा हिंदी अनुवादसहित सम्पूर्ण ग्रन्थ शायद उपलब्ध नहीं है। मूल तथा हिंदी अनुवाद पृथक्-पृथक् तो प्राप्त होते हैं, परंतु उनका मूल्य बहुत है।

इसीलिये महाभारतका महत्त्व समझनेवाले प्रेमी तथा उदाराशय सज्जनोंका बहुत दिनों से यह आग्रह था कि गीताप्रेसके द्वारा मूल संस्कृत एवं हिंदी अनुवाद सहित सम्पूर्ण महाभारत प्रकाशित किया जाय। इसके लिये बहुत दिनोंसे प्रयास भी चल रहा था। कई बार योजनाएँ भी बनायी गयीं: परंतु सत्कार्य प्रारम्भका पुण्य दिवस तभी प्राप्त होता है, जब भगवत्कृपासे वैसा अवसर प्राप्त हो जाता है।

बहुत दिनोंके प्रयत्न के पश्चात् अब वह सुअवसर आया है और महाभारत का यह प्रथम खण्ड आपके हाथोंमें उपस्थित है। महाभारतमें आया है कि भगवान् व्यासदेवने साठ लाख श्लोकोंकी एक महाभारत-संहिताका निर्माण किया था। उस समय महान् ग्रन्थके चार छोटे बड़े संस्करण थे। इनमें पहला तीस लाख श्लोकोंका था, जिसे नारदजीने देवलोकमें देवताओंको सुनाया था। दूसरा पंद्रह लाख श्लोकोंका था, जिसको देवल और असित ऋषिने पितृलोकमें पितृगणोंको सुनाया था। तीसरा जो चौदह लाख श्लोकोंका था, शुकदेवजीके द्वारा गन्धर्वो, यक्षों आदिको सुनाया गया और शेष एक लाख इलोकोंके चौथे संस्करणका प्रचार मनुष्य लोक में हुआ |

महाभारत भारतीय संस्कृति का, आर्य सनातन-धर्म का अद्भुत महाग्रंथ है। इसे पंचम वेद भी कहा जाता है। इस महाग्रंथ में उपनिषदों का सार, इतिहास, पुराणों का उन्मेष, निमेष, चतुर्वर्ण का विधान, पुराणों का आशय, ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि का परिमाण, तीर्थों, पुण्य देशों, नदियों, पर्वतों, समुद्रों तथा वनों का वर्णन होने के कारण यह अनन्त गूढ़ गुह्य रत्नों का भण्डार है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें निखिल रसामृत-सिन्धु, अनन्त प्रेमाधार भगवान् श्रीकृष्ण के गुण-गौरव का गान है। छः खण्डों में प्रकाशित यह ग्रन्थ-रत्न हिन्दू संस्कृति के अध्येताओं-हेतु मननीय और संग्रहणीय है। सचित्र, सजिल्द।

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Weight 15 g

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