Description
यह पुस्तक श्री गोयन्दका जी के मारवाडी भाषी पत्रो का हिन्दी-संकलन है।
भगवान् के प्रेमी निर्बल नहीं होते। वे सब कुछ कर सकते हैं। भगवान् भक्त के अधीन हो जाते है। दुर्वासा ऋषि भगवान् के पास गये। अपना अपराध क्षमा करनेके लिये प्रार्थना की। भगवान् ने कहा-यह मेरे हाथ की बात नहीं है। मैं तो भक्त के अधीन हूँ। आप अम्बरीष के पास ही जायँ ।
मान-बड़ाई, प्रतिष्ठा से खूब डरना चाहिये।
जन-समूह का संग कम करना चाहिये।
मनुष्य जैसा संग करता है वैसा ही प्रभाव उसपर होता है।
जो मनुष्य आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन कर सके, उसके लिये शास्त्र यही आज्ञा देगा कि ब्रह्मचर्य का पालन करो और भगवान् की भक्ति करो।
बसहिं भगति मनि जेहि उर माहीं । खल कामादि निकट नहिं जाहीं॥
भगवान् के ऊपर निर्भर रहना चाहिये, वे ही सब प्रकार निभाते हैं, उनका काम यही है। खूब विश्वास रखना चाहिये। निश्चिन्त रहना चाहिये। बिलकुल चिन्ताकी गुंजाइश ही नहीं दे। हमें किस चीजका भय है?
इन पत्रों को पढने से हमे जीवन में भगवान की ओर बढने की निरन्तर प्रेरणा मिलती है
अतः हमारा विश्वास है कि पाठकों के लिए यह पुस्तक लाभदायक सिद्ध होगी।
Additional information
Weight | 0.3 g |
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