Description
भगवान का भजन, अर्चना, उपासना, ध्यान आदि करना ही भगवान की भक्ति है। भक्त भगवान के सगुण रूप में ही अनुरक्त रहता है, निर्गुण रूप में नहीं। वह साकार ईश्वर की उपासना करता है, निराकार की नहीं। भगवान असीम तथा भक्त सीमित है।
ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे उत्तम और सरल उपाय प्रेम ही है। प्रेम भक्ति का प्राण भी होता है। प्रेम के बिना इंसान चाहे कितना ही जप, तप, दान कर ले, ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है। दुनिया का कोई भी साधन प्रेम के बिना जीव को ईश्वर का साक्षात नहीं करा सकता है।
यदि हम जीवों के प्रति दया और सेवा का भाव रखकर परोपकार पर बढ़ते रहें तो वह किसी भी भजन-कीर्तन से कहीं ज्यादा है. आप यह संकल्प लें कि आप जहां भी हैं, जो भी काम करते हैं वहां यदि कोई जरूरतमंद और परेशानहाल आए तो उसके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करके उसकी सहायता करेंगे. ईश्वर की यह भी सच्ची भक्ति है.
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Weight | 0.2 g |
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