भक्ति-रहस्य/ Bhakti Rahassya

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“भक्ति-रहस्य” एक गहन और दिव्य आध्यात्मिक ग्रंथ है, जिसमें “भक्ति” की वास्तविकता, उसका रहस्य, उसका विज्ञान और उसका साधनात्मक पक्ष गहराई से विवेचित किया गया है। इस पुस्तक में महान विद्वान और दार्शनिक महामहोपाध्याय पं. गोपीनाथ कविराज ने भारतीय भक्ति परंपरा का रहस्यात्मक पक्ष उजागर किया है और बताया है कि केवल कर्मकांड या भावनाओं तक सीमित न रहकर भक्ति एक आध्यात्मिक साधना है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है।

पुस्तक का सम्पादन प्रसिद्ध संत विचारक हनुमानप्रसाद पोद्दार ने किया है, जो गीता प्रेस के माध्यम से करोड़ों पाठकों तक भक्ति साहित्य पहुँचाने के लिए प्रसिद्ध हैं।


मुख्य विषयवस्तु:

  1. भक्ति का तत्वज्ञान:
    पुस्तक में बताया गया है कि भक्ति केवल भगवान की स्तुति या पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य अनुभूति है, जो आत्मा की परमात्मा के प्रति गहन आकांक्षा से उत्पन्न होती है।

  2. भक्ति के मार्ग:
    इसमें नवधा भक्ति (श्रवण, कीर्तन, स्मरण आदि) के गूढ़ अर्थ और उनके पीछे छिपे आध्यात्मिक रहस्य को विश्लेषित किया गया है। यह बताया गया है कि प्रत्येक प्रकार की भक्ति अंततः आत्मा के शुद्धिकरण और ईश्वर से एकाकार की ओर ले जाती है।

  3. शिव की उपासना और ध्यान:
    पुस्तक के मुखपृष्ठ पर भगवान शिव की उपस्थिति और भीतर दिए गए उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि शिवभक्ति के माध्यम से साधक किस प्रकार ईश्वर के रहस्य को आत्मसात कर सकता है।

  4. योग और भक्ति का संबंध:
    कविराज जी ने योग, ज्ञान और भक्ति के समन्वय की गूढ़ व्याख्या की है। यह बताया गया है कि भक्तियोग केवल भावप्रधान नहीं, बल्कि उच्चतम आत्मबोध का मार्ग है।

  5. व्यक्तिगत अनुभव और दार्शनिक विवेचना:
    इसमें लेखक ने अपने चिंतन और अनुभवों के माध्यम से यह भी स्पष्ट किया है कि भक्ति कैसे साधक को भीतर से बदल देती है और उसे लोभ, मोह, अहंकार आदि से मुक्त कर देती है।


भाषा और शैली:

इस पुस्तक की भाषा संस्कृतनिष्ठ, परंतु गूढ़ तत्वों को समझाने हेतु पर्याप्त व्याख्यात्मक है। जहाँ गहराई से विश्लेषण किया गया है, वहीं साधकों के लिए इसे सहज बनाने हेतु सम्पादक ने सरल टिप्पणी और भाष्य जोड़ा है।


पाठकों के लिए विशेष संदेश:

यह पुस्तक उन जिज्ञासु पाठकों और साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो भक्ति को केवल एक भावनात्मक अनुभव नहीं, बल्कि एक दिव्य, दार्शनिक और साधनात्मक मार्ग मानते हैं। यह एक ऐसी रचना है, जो आत्मा को भीतर से झकझोरती है और सच्ची ईश्वर भक्ति की ओर प्रेरित करती है।

Description

“भक्ति-रहस्य” एक गहन और दिव्य आध्यात्मिक ग्रंथ है, जिसमें “भक्ति” की वास्तविकता, उसका रहस्य, उसका विज्ञान और उसका साधनात्मक पक्ष गहराई से विवेचित किया गया है। इस पुस्तक में महान विद्वान और दार्शनिक महामहोपाध्याय पं. गोपीनाथ कविराज ने भारतीय भक्ति परंपरा का रहस्यात्मक पक्ष उजागर किया है और बताया है कि केवल कर्मकांड या भावनाओं तक सीमित न रहकर भक्ति एक आध्यात्मिक साधना है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है।

पुस्तक का सम्पादन प्रसिद्ध संत विचारक हनुमानप्रसाद पोद्दार ने किया है, जो गीता प्रेस के माध्यम से करोड़ों पाठकों तक भक्ति साहित्य पहुँचाने के लिए प्रसिद्ध हैं।


मुख्य विषयवस्तु:

  1. भक्ति का तत्वज्ञान:
    पुस्तक में बताया गया है कि भक्ति केवल भगवान की स्तुति या पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य अनुभूति है, जो आत्मा की परमात्मा के प्रति गहन आकांक्षा से उत्पन्न होती है।

  2. भक्ति के मार्ग:
    इसमें नवधा भक्ति (श्रवण, कीर्तन, स्मरण आदि) के गूढ़ अर्थ और उनके पीछे छिपे आध्यात्मिक रहस्य को विश्लेषित किया गया है। यह बताया गया है कि प्रत्येक प्रकार की भक्ति अंततः आत्मा के शुद्धिकरण और ईश्वर से एकाकार की ओर ले जाती है।

  3. शिव की उपासना और ध्यान:
    पुस्तक के मुखपृष्ठ पर भगवान शिव की उपस्थिति और भीतर दिए गए उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि शिवभक्ति के माध्यम से साधक किस प्रकार ईश्वर के रहस्य को आत्मसात कर सकता है।

  4. योग और भक्ति का संबंध:
    कविराज जी ने योग, ज्ञान और भक्ति के समन्वय की गूढ़ व्याख्या की है। यह बताया गया है कि भक्तियोग केवल भावप्रधान नहीं, बल्कि उच्चतम आत्मबोध का मार्ग है।

  5. व्यक्तिगत अनुभव और दार्शनिक विवेचना:
    इसमें लेखक ने अपने चिंतन और अनुभवों के माध्यम से यह भी स्पष्ट किया है कि भक्ति कैसे साधक को भीतर से बदल देती है और उसे लोभ, मोह, अहंकार आदि से मुक्त कर देती है।


भाषा और शैली:

इस पुस्तक की भाषा संस्कृतनिष्ठ, परंतु गूढ़ तत्वों को समझाने हेतु पर्याप्त व्याख्यात्मक है। जहाँ गहराई से विश्लेषण किया गया है, वहीं साधकों के लिए इसे सहज बनाने हेतु सम्पादक ने सरल टिप्पणी और भाष्य जोड़ा है।


पाठकों के लिए विशेष संदेश:

यह पुस्तक उन जिज्ञासु पाठकों और साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो भक्ति को केवल एक भावनात्मक अनुभव नहीं, बल्कि एक दिव्य, दार्शनिक और साधनात्मक मार्ग मानते हैं। यह एक ऐसी रचना है, जो आत्मा को भीतर से झकझोरती है और सच्ची ईश्वर भक्ति की ओर प्रेरित करती है।

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