प्रेम का सच्चा स्वरूप और शोकनास के उपाए\prem ka sachcha svaroop aur shokanaas ke upae\

8.00

Description

प्रेमका वास्तविक वर्णन हो नहीँ सकता । प्रेम जीवनको प्रेममय बना देता है।
प्रेम गूँगेका गुड़ है। प्रेमका आनंद अवर्णनीय होता है।रोमांच,अश्रुपात,प्रकम्प आदि तो उसके बाह्य लक्षण हैँ,भीतरके रस प्रवाहको कोई कहे भी तो कैसे ?
वह धारा तो उमड़ी हुई आती है और हृदयको आप्लावित कर डालती है । पुस्तकोँ मेँ प्रेमियोँकी कथा पढ़ते है; किँतु सच्चे प्रेमीका दर्शन तो आज दुर्लभ ही है।परमात्माका सच्चा परम प्रेमी एक ही व्यक्ति करोड़ो जीवोँको पवित्र कर सकता है ।
बरसते हुए मेघ जिधरसे निकलते हैँ उधरकी ही धराको तर कर देते हैँ।इसी प्रकार प्रेमकी वर्षासे यावत् चराचरको तर कर देता है । प्रेमी के दर्शनमात्रसे ही हृदय तर हो जाता है और लहलहा उठता है । तुलसीदासजी महाराजने कहा है—
मोरेँ मन प्रभु अस विश्वासा।राम ते अधिक राम कर दासा॥
राम सिँधु घन सज्जन धीरा।चंदन तरु हरि संत समीरा॥

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Weight 0.3 kg

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