प्रश्नोत्तरी/ Prashnottari

18.00

श्रीस्वामी शंकराचार्य जी की  प्रश्नोत्तर-मणिमाला बहुत ही उपादेय पुस्तिका है  | इसके प्रत्येक प्रश्न और उत्तर पर  मनन पूर्वक विचार करना आवश्यक है | संसार में स्त्री, धन और पुत्रादि पदार्थों के कारण ही मनुष्य विशेष रूप से बन्धन में रहता है, इन पदार्थों से वैराग्य होने में ही कल्याण है, यही समझकर उन्होंने स्त्री, धन और पुत्रादि की निन्दा की है | स्त्री के लिए  विशेष जोर देने का कारण भी स्पष्ट है | धन, पुत्रादि छोडने वाले भी प्राय: स्त्रियों में आसक्त देखे जाते हैं, वास्तव में यह दोष स्त्रियों का नहीं है, यह दोष तो पुरुषों के बिगड़े हुए मन का है; परन्तु मन बड़ा चंचल है, इसलिए संन्यासियों  को स्त्रियों से हर तरह से अलग ही रहना चाहिए | जान पड़ता है कि यह पुस्तिका खासकर संन्यासियों के लिए ही लिखी गयी थी | इसमें बहुत सी बातें ऐसी हैं जो सभी के काम की हैं | अत: उनसे हम लोगों को पूरा लाभ उठाना चाहिए  | स्त्री, पुत्र, धन आदि संसार के सभी पदार्थों से यथासाध्य ममता का त्याग करना आवश्यक है |

Description

श्रीस्वामी शंकराचार्य जी की  प्रश्नोत्तर-मणिमाला बहुत ही उपादेय पुस्तिका है  | इसके प्रत्येक प्रश्न और उत्तर पर  मनन पूर्वक विचार करना आवश्यक है | संसार में स्त्री, धन और पुत्रादि पदार्थों के कारण ही मनुष्य विशेष रूप से बन्धन में रहता है, इन पदार्थों से वैराग्य होने में ही कल्याण है, यही समझकर उन्होंने स्त्री, धन और पुत्रादि की निन्दा की है | स्त्री के लिए  विशेष जोर देने का कारण भी स्पष्ट है | धन, पुत्रादि छोडने वाले भी प्राय: स्त्रियों में आसक्त देखे जाते हैं, वास्तव में यह दोष स्त्रियों का नहीं है, यह दोष तो पुरुषों के बिगड़े हुए मन का है; परन्तु मन बड़ा चंचल है, इसलिए संन्यासियों  को स्त्रियों से हर तरह से अलग ही रहना चाहिए | जान पड़ता है कि यह पुस्तिका खासकर संन्यासियों के लिए ही लिखी गयी थी | इसमें बहुत सी बातें ऐसी हैं जो सभी के काम की हैं | अत: उनसे हम लोगों को पूरा लाभ उठाना चाहिए  | स्त्री, पुत्र, धन आदि संसार के सभी पदार्थों से यथासाध्य ममता का त्याग करना आवश्यक है |

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