परब्रह्म स्वयं भगवान श्री कृष्ण/ Parambrahm Swayam Bhagwan Shree Krishna

60.00

‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ में कृष्ण को ही ‘परब्रह्म’ माना गया है, जिनकी इच्छा से सृष्टि का जन्म होता है। ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ में श्रीकृष्ण लीला का वर्णन ‘भागवत पुराण’ से काफी भिन्न है। भगवान श्री कृष्ण त्रिलोकी के अधीश्वर योगेश्वर हैं जिनके स्वरूप में यह विश्व भासित है| यामल का अर्थ होता है युगल| इस युगल में न कोई श्रेष्ठ होता है न कोई निम्न| यह ब्रह्म का प्रथम बाह्य स्फार होता है| यह सामरस्य कि अवस्था है| श्री कृष्णयामल परब्रह्म भगवान श्री कृष्ण व उनकी महाचिति भगवती राधा का यामल है| जब तत्व को केवल तत्व जानता हो तो वह तत्व स्वयं तत्ववेत्ता बनता है| यह हमें श्रीमद्भगवद्गीता के अध्ययन से स्पष्ट ज्ञात हो जाता है| श्री त्रिपुरा रहस्य कि भांति यह ग्रन्थ रत्न भी कथा स्वरूप प्रसंगो के तत्वों का उद्घाटन करने वाला है| यह यामल भगवान श्री कृष्ण व भगवती श्री राधा कि यामल साधना का प्रतिपादक है| 

Description

‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ में कृष्ण को ही ‘परब्रह्म’ माना गया है, जिनकी इच्छा से सृष्टि का जन्म होता है। ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ में श्रीकृष्ण लीला का वर्णन ‘भागवत पुराण’ से काफी भिन्न है। भगवान श्री कृष्ण त्रिलोकी के अधीश्वर योगेश्वर हैं जिनके स्वरूप में यह विश्व भासित है| यामल का अर्थ होता है युगल| इस युगल में न कोई श्रेष्ठ होता है न कोई निम्न| यह ब्रह्म का प्रथम बाह्य स्फार होता है| यह सामरस्य कि अवस्था है| श्री कृष्णयामल परब्रह्म भगवान श्री कृष्ण व उनकी महाचिति भगवती राधा का यामल है| जब तत्व को केवल तत्व जानता हो तो वह तत्व स्वयं तत्ववेत्ता बनता है| यह हमें श्रीमद्भगवद्गीता के अध्ययन से स्पष्ट ज्ञात हो जाता है| श्री त्रिपुरा रहस्य कि भांति यह ग्रन्थ रत्न भी कथा स्वरूप प्रसंगो के तत्वों का उद्घाटन करने वाला है| यह यामल भगवान श्री कृष्ण व भगवती श्री राधा कि यामल साधना का प्रतिपादक है| 

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