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धर्म, तत्त्व और संघ
1. धर्म (Dharma)
धर्म का सामान्य अर्थ है — कर्तव्य, सदाचार, नैतिकता, नियम और अनुशासन। बौद्ध धर्म में ‘धर्म’ से तात्पर्य है भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ, जिनका पालन कर मनुष्य दुःख से मुक्ति और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
बुद्ध ने धर्म को व्यावहारिक जीवन में सत्य, करुणा, मैत्री, करुणा और अहिंसा के रूप में समझाया।
2. तत्त्व (Tath)
‘तत्त्व’ का अर्थ है — सत्य या वास्तविकता। बौद्ध दर्शन में ‘तथ’ का मतलब है जीवन और जगत की सच्चाई को जानना और उसे समझकर जीवन में उतारना।
बुद्ध ने चार आर्य सत्यों (Four Noble Truths) को तत्त्व रूप में बताया है:
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दुःख का कारण (Samudaya)
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दुःख की समाप्ति (Nirodha)
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दुःख-निरोध का मार्ग (Magga)
3. संघ (Sangh)
‘संघ’ का अर्थ है — समुदाय या समूह। बौद्ध धर्म में संघ से तात्पर्य है उन भिक्षुओं (साधुओं) और भिक्षुणियों (साध्वियों) का समूह, जो बुद्ध के बताए मार्ग पर चलकर मोक्ष की ओर अग्रसर हैं।
संघ तीन प्रकार का माना जाता है:
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भिक्षु संघ (पुरुष साधु)
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भिक्षुणी संघ (महिला साध्वी)
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उपासक-उपासिका संघ (साधारण अनुयायी पुरुष व स्त्रियाँ)
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