त्याग की महिमा/ Tyag Ki Mahima

20.00

त्याग की भावना अत्यंत पवित्र है। त्याग करने वाले पुरुषों ने ही संसार को प्रकाशमान किया है। जिसने भी जीवन में त्यागने की भावना को अंगीकार किया, उसने ही उच्च से उच्च मानदंड स्थापित किए हैं। सच्चा सुख व शांति त्यागने में है, न कि किसी तरह कुछ हासिल करने में। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि त्याग से तत्काल शांति की प्राप्ति होती है और जहां शांति होती है, वहीं सच्चा सुख होता है।

मुण्डक उपनिषद में त्याग की महिमा का गुणगान किया गया है। सांसारिक वस्तुओं और लोगों के लिए लालसा, खुशी या दुख के आगे झुकना, व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से कार्य करना आदि व्यक्ति को उस बोध से अयोग्य घोषित कर देता है जो केवल शक्ति से प्राप्त होता है – मानसिक और नैतिक शक्ति।

श्रद्धालुजनके निरन्तर प्रेमाग्रहके फलस्वरूप इन प्रवचनोंको लेखबद्धकर पुस्तकरूपमें प्रस्तुत करनेका यह सुयोग श्रीभगवान्की अहैतुकी कृपासे ही सम्भव हो सका है।

Description

त्याग की भावना अत्यंत पवित्र है। त्याग करने वाले पुरुषों ने ही संसार को प्रकाशमान किया है। जिसने भी जीवन में त्यागने की भावना को अंगीकार किया, उसने ही उच्च से उच्च मानदंड स्थापित किए हैं। सच्चा सुख व शांति त्यागने में है, न कि किसी तरह कुछ हासिल करने में। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि त्याग से तत्काल शांति की प्राप्ति होती है और जहां शांति होती है, वहीं सच्चा सुख होता है।

मुण्डक उपनिषद में त्याग की महिमा का गुणगान किया गया है। सांसारिक वस्तुओं और लोगों के लिए लालसा, खुशी या दुख के आगे झुकना, व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से कार्य करना आदि व्यक्ति को उस बोध से अयोग्य घोषित कर देता है जो केवल शक्ति से प्राप्त होता है – मानसिक और नैतिक शक्ति।

श्रद्धालुजनके निरन्तर प्रेमाग्रहके फलस्वरूप इन प्रवचनोंको लेखबद्धकर पुस्तकरूपमें प्रस्तुत करनेका यह सुयोग श्रीभगवान्की अहैतुकी कृपासे ही सम्भव हो सका है।

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