ज्ञान के दीप जले/ Gyan Ke Deep Jale

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Description

ज्ञान के दीप जले
जहाँ श्रध्दा होती है, वहाँ तर्क नहीं होता | श्वेतकेतु को केवल आज्ञापालन से तत्वज्ञान हो गया –
‘दूसरे मनुष्य इस प्रकार ( ध्यानयोग, सांख्ययोग, कर्मयोग आदि साधनों को ) नहीं जानते, पर दूसरों से (जीवन्मुक्त महापुरुषों से ) सुनकर ही उपासना करते हैं, ऐसे वे सुनने के अनुसार आचरण करने वाले मनुष्य भी मृत्यु को तर जाते हैं |’ (गीता ) |
जैसे कोई धनी आदमी का कहना करे तो उसे धन मिलेगा, ऐसे ही तत्वज्ञानी का कहना करे तो तत्वज्ञान मिलेगा | गुरु ज्ञानी न भी हो तो भी उनकी आज्ञा से ज्ञान हो जायगा | जैसे, पति के आज्ञापालन से मन्दोदरी को वह ज्ञान हो गया, जो रावण को नहीं था | वास्तव में वह पति की आज्ञा का पालन नहीं, प्रत्युत भगवान् की, शास्त्र की आज्ञा का पालन है | तात्पर्य यह हुआ कि साधक की निष्ठा ही कल्याण करने वाली है
गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रध्देय स्वामी रामसुखदास जी की पुस्तक “ज्ञान के दीप जले” से |

 

स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज के प्रवचनों पर आधारित पुस्तक – ज्ञान के दीप जले.

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Weight 0.3 kg

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