Description
श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज गीताके मर्मज्ञ व्याख्याता हैं, साथ ही गीताके उपदेशोंको अपने जीवनमें उतारकर लोगोंके सामने सहज ही गीताका मूर्तिमान् आदर्श उपस्थित करते रहते हैं । इनके प्रवचन सभी स्तरके लोगोंमें होते हैं और ये बोलते भी हैंप्रसंगानुसार विविध विषयोंपर । पर ये समझाते हैं बड़ी ही सहज सरल साधुभाषामें केवल यह एक ही बात कि मानवजीवनका उद्देश्य भगवत्प्राप्ति है और उसके साधनरूपमें प्रत्येक मनुष्य अपने अपने विहित कर्तव्य कर्मका भगवत्प्रीत्यर्थ लोकहितकी उदार भावनासे सम्पादन करके इस उद्देश्यको प्राप्त कर सकता है । कर्म सबके एकसे नहीं हो सकते, लक्ष्य सबका एक होना चाहिये । अत: भगवत्प्राप्तिके लक्ष्यसे किये जानेवाले प्रत्येक विहित कर्मको ही कर्मयोग कह सकते हैं, प्रत्येक कर्मको ही यज्ञ कह सकते हैं और प्रत्येक कर्मको ही भगवान्की पूजा कह सकते हैं । सोनाजागना, खानापीना, देनालेना, व्यवहार बर्ताव, अग्निहोत्र, सेवा, दान, तप, योग, स्वाध्याय आदि सभी कर्म इसमें आ सकते हैं । यही भजन भी है । मनसे भगवान्का स्मरण होता रहे और तनवचनसे विविध विचित्र यथायोग्य कर्म ।
इस जीवनोपयोगी कल्याणमार्ग नामक पुस्तकके सभी कर्तव्य कर्मोंका नाम यज्ञ है शीर्षक पहले लेखमें इसी तत्त्वका बड़ी सरल भाषामें वर्णन किया गया है । ध्यान देकर पढ़नेसे गीतोक्त निष्काम कर्मका मर्म, यज्ञका रहस्य तथा भगवत्पूजाका विधान सहज ही समझमें आ सकता है और तदनुसार आचरण करनेपर वह भगवत्प्राप्तिका अमोघ साधन बनकर भगवत्प्राप्तिके पवित्र पथमें तो आगे बढ़ायेगा ही । इसमें दूसरा लेख कर्मचारियोंके तथा उद्योगसंचालकोंके कर्तव्य शीर्षक है । यह समयोपयोगी बहुत सुन्दर लेख है । इसमें कर्मचारियों एवं संचालकोंके लिये जो कर्तव्य बतलाये गये हैं, उनपर यदि दोनों ओरसे ध्यान देकर तदनुसार आचरण किया जाय तो केवल सारे झगड़ेबखेड़े ही नहीं मिट जायँ परस्पर प्रेम तथा सौहार्दकी विशेष वृद्धि हो, उद्योग धंधे विशेष लाभदायक हो जायँ और कर्मचारी तथा मालिकदोनोंको ही भौतिक लाभके साथसाथ पारमार्थिक लाभकी भी प्राप्ति हो ।
तदनन्तर विषयासक्ति और भगवत्प्रातिमें भेद, मनकी हलचलके नाशके सरल उपाय, दैवी सम्पदा एवं आसुरी सम्पदा ये तीन बड़े ही उपयोगी छोटे लेख और हैं । मेरा यह नम्र निवेदन है कि इस पुस्तकके अत्यन्त उपयोगी तथा परम पवित्र भावोंपर ध्यान देकर पाठकगण तदनुसार आचरण करें ।
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