जय जय प्रियतम/ Jai Jai Priyatam

170.00

श्रीभाईजी की पारमार्थिक स्तिथि को जितना श्रीराधाबाबा ने अनुभव किया उसका कतिपय अंश योगमाया की लीला महाशक्ति की कृपा से जगत के कल्याण हेतु श्रीराधाबाबा की लेखनी एवं वाणी से समय-समय पर प्रस्फुटित होती रही| यह सामग्री यत्र-तत्र बिखरी हुई है| इसे एक जगह प्रकाशित में करने का उद्देश्य यही है की बाबाको श्रीभाईजी की महिमा का जो ज्ञान था वह सर्वसाधारण को सुलभ हो जाये| श्री राधाबाबा की हस्तलिखित सामग्री यथास्थान देने का प्रयास किया गया है|सभी सामग्री उनके हस्ताक्षरों इसीलिए नहीं दी जा सकी कि वे पृष्ठ अत्यंत जीर्ण अवस्था में है| आशा है की श्रीराधाबाबा के ये वचनामृत अनंतकाल तक भक्तजनों के लिये प्रेरणाप्रद रहेंगें और भूले-भटकों को निरंतर सत्पथ प्रदर्शित करते रहेंगे|

Description

श्रीभाईजी की पारमार्थिक स्तिथि को जितना श्रीराधाबाबा ने अनुभव किया उसका कतिपय अंश योगमाया की लीला महाशक्ति की कृपा से जगत के कल्याण हेतु श्रीराधाबाबा की लेखनी एवं वाणी से समय-समय पर प्रस्फुटित होती रही| यह सामग्री यत्र-तत्र बिखरी हुई है| इसे एक जगह प्रकाशित में करने का उद्देश्य यही है की बाबाको श्रीभाईजी की महिमा का जो ज्ञान था वह सर्वसाधारण को सुलभ हो जाये| श्री राधाबाबा की हस्तलिखित सामग्री यथास्थान देने का प्रयास किया गया है|सभी सामग्री उनके हस्ताक्षरों इसीलिए नहीं दी जा सकी कि वे पृष्ठ अत्यंत जीर्ण अवस्था में है| आशा है की श्रीराधाबाबा के ये वचनामृत अनंतकाल तक भक्तजनों के लिये प्रेरणाप्रद रहेंगें और भूले-भटकों को निरंतर सत्पथ प्रदर्शित करते रहेंगे|

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