गो-अङ्क कल्याण/ Gau Anka- Kalyan

220.00

हिन्दु, गाय को ‘माता’ (गौमाता) कहते हैं। इसके बछड़े बड़े होकर गाडी  खींचते हैं एवं खेतों की जुताई करते हैं।

भारत में वैदिक काल से ही गाय का महत्व रहा है। आरम्भ में आदान-प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गोसंख्या से की जाती थी। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है।

गोहत्यां ब्रह्महत्यां च करोति ह्यतिदेशिकीम्।
यो हि गच्छत्यगम्यां च यः स्त्रीहत्यां करोति च ॥ २३ ॥
भिक्षुहत्यां महापापी भ्रूणहत्यां च भारते।
कुम्भीपाके वसेत्सोऽपि यावदिन्द्राश्चतुर्दश ॥ २४ ॥

समुन्द्रमंथन के दौरान इस धरती पर दिव्य गाय की उत्पत्ति हुई | भारतीय गोवंश को माता का दर्जा दिया गया है इसलिए उन्हें “गौमाता” कहते है | हमारे शास्त्रों में गाय को पूजनीय बताया गया है इसीलिए हमारी माताएं बहनें रोटी बनाती है तो सबसे पहली रोटी गाय के की होती है गाय का दूध अमृत तुल्य होता है |

भागवत पुराण के अनुसार, समुन्द्रमंथन के समय पाँच दैवीय कामधेनु ( नन्दा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला, बहुला) निकलीं। कामधेनु या सुरभि (संस्कृत: कामधुक) व्रह्मा द्वारा ली गई। दिव्य वैदिक गाय (गौमाता) ऋषि को दी गई ताकि उसके दिव्य अमृत पंचगव्य का उपयोग यज्ञ, आध्यात्मिक अनुष्ठानों और संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए किया जा सके।

गौ-सेवा से धन-सम्‍पत्ति, आरोग्‍य आदि मनुष्‍य-जीवन को सुखकर बनानेवाले सम्‍पूर्ण साधन सहज ही प्राप्‍त हो जाते हैं। मानव #गौ की महिमा को समझकर उससे प्राप्त दूध, दही आदि पंचगव्यों का लाभ ले तथा अपने जीवन को स्वस्थ, सुखी बनाये – इस उद्देश्य से हमारे परम करुणावान ऋषियों-महापुरुषों ने गौ को माता का दर्जा दिया तथा कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन गौ-पूजन की परम्परा स्थापित की। यही मंगल दिवस गोपाष्टमी कहलाता है।

गोपाष्‍टमी भारतीय संस्‍कृति का एक महत्‍वपूर्ण पर्व है। मानव–जाति की समृद्धि गौ-वंश की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है। अत: गोपाष्‍टमी के पावन पर्व पर गौ-माता का पूजन-परिक्रमा कर विश्‍वमांगल्‍य की प्रार्थना करनी चाहिए।

विश्व में गायों की कुल संख्या १३ खरब (1.3 बिलियन) होने का अनुमान है।

कल्याण का वार्षिक विशेषांक पुस्तक रूप में।

Description

हिन्दु, गाय को ‘माता’ (गौमाता) कहते हैं। इसके बछड़े बड़े होकर गाडी  खींचते हैं एवं खेतों की जुताई करते हैं।

भारत में वैदिक काल से ही गाय का महत्व रहा है। आरम्भ में आदान-प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गोसंख्या से की जाती थी। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है।

गोहत्यां ब्रह्महत्यां च करोति ह्यतिदेशिकीम्।
यो हि गच्छत्यगम्यां च यः स्त्रीहत्यां करोति च ॥ २३ ॥
भिक्षुहत्यां महापापी भ्रूणहत्यां च भारते।
कुम्भीपाके वसेत्सोऽपि यावदिन्द्राश्चतुर्दश ॥ २४ ॥

समुन्द्रमंथन के दौरान इस धरती पर दिव्य गाय की उत्पत्ति हुई | भारतीय गोवंश को माता का दर्जा दिया गया है इसलिए उन्हें “गौमाता” कहते है | हमारे शास्त्रों में गाय को पूजनीय बताया गया है इसीलिए हमारी माताएं बहनें रोटी बनाती है तो सबसे पहली रोटी गाय के की होती है गाय का दूध अमृत तुल्य होता है |

भागवत पुराण के अनुसार, समुन्द्रमंथन के समय पाँच दैवीय कामधेनु ( नन्दा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला, बहुला) निकलीं। कामधेनु या सुरभि (संस्कृत: कामधुक) व्रह्मा द्वारा ली गई। दिव्य वैदिक गाय (गौमाता) ऋषि को दी गई ताकि उसके दिव्य अमृत पंचगव्य का उपयोग यज्ञ, आध्यात्मिक अनुष्ठानों और संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए किया जा सके।

गौ-सेवा से धन-सम्‍पत्ति, आरोग्‍य आदि मनुष्‍य-जीवन को सुखकर बनानेवाले सम्‍पूर्ण साधन सहज ही प्राप्‍त हो जाते हैं। मानव #गौ की महिमा को समझकर उससे प्राप्त दूध, दही आदि पंचगव्यों का लाभ ले तथा अपने जीवन को स्वस्थ, सुखी बनाये – इस उद्देश्य से हमारे परम करुणावान ऋषियों-महापुरुषों ने गौ को माता का दर्जा दिया तथा कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन गौ-पूजन की परम्परा स्थापित की। यही मंगल दिवस गोपाष्टमी कहलाता है।

गोपाष्‍टमी भारतीय संस्‍कृति का एक महत्‍वपूर्ण पर्व है। मानव–जाति की समृद्धि गौ-वंश की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है। अत: गोपाष्‍टमी के पावन पर्व पर गौ-माता का पूजन-परिक्रमा कर विश्‍वमांगल्‍य की प्रार्थना करनी चाहिए।

विश्व में गायों की कुल संख्या १३ खरब (1.3 बिलियन) होने का अनुमान है।

कल्याण का वार्षिक विशेषांक पुस्तक रूप में।

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