गृहस्थ में कैसे रहें ?/ Grihasth me Kaise Rahen?

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गृहस्थ में कैसे रहें?’ पुस्तक स्वामी रामसुखदास जी द्वारा रचित एक अत्यंत उपयोगी और व्यावहारिक ग्रंथ है, जिसमें गृहस्थ जीवन जीने वाले लोगों के लिए धार्मिक, नैतिक, और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान किया गया है। यह पुस्तक बताती है कि कैसे एक साधारण व्यक्ति अपने दैनिक जीवन को धर्म, भक्ति, सेवा और संयम के साथ जीकर मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर हो सकता है।


🏡 मुख्य विषयवस्तु:

  1. गृहस्थ जीवन की वास्तविकता और महत्व

  2. पति-पत्नी के कर्तव्य और मर्यादाएँ

  3. संतान के प्रति उत्तरदायित्व

  4. धन-संपत्ति का सदुपयोग कैसे करें?

  5. धार्मिक और साधन-युक्त जीवन

  6. गृहस्थ होते हुए वैराग्य और भक्ति की साधना

  7. सदाचार, संयम और त्याग का महत्व

  8. सत्संग, स्वाध्याय और सेवा का समन्वय

  9. शांति और संतोषपूर्वक जीवन जीने की कला


🌟 विशेषताएँ:

  • सरल भाषा और स्पष्ट दृष्टिकोण स्वामीजी की शैली में जटिल बातों को भी सहज ढंग से समझाया गया है।

  • उदाहरणों से युक्त – व्यावहारिक दृष्टांतों से समझाया गया है कि एक गृहस्थ को किन-किन परिस्थितियों में कैसे व्यवहार करना चाहिए।

  • सभी आयु-वर्गों के लिए उपयोगी – विशेषतः गृहस्थ जीवन में रत वे लोग जो धर्म और आत्मोन्नति की ओर बढ़ना चाहते हैं।


🧘 उद्देश्य:

इस पुस्तक का उद्देश्य यह है कि व्यक्ति गृहस्थ रहते हुए भी आत्म-कल्याण कर सकता है। उसे त्यागी या सन्यासी बनने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी वह धर्म, योग और मोक्ष की ओर बढ़ सकता है।


✨ निष्कर्ष:

‘गृहस्थ में कैसे रहें?’ एक ऐसी अनुपम पुस्तक है जो हर गृहस्थ के लिए दर्पण और मार्गदर्शक का कार्य करती है। यह पुस्तक जीवन के हर मोड़ पर सत्य, संयम, सेवा और संतोष की भावना को बनाए रखते हुए जीने की प्रेरणा देती है।

Description

गृहस्थ में कैसे रहें?’ पुस्तक स्वामी रामसुखदास जी द्वारा रचित एक अत्यंत उपयोगी और व्यावहारिक ग्रंथ है, जिसमें गृहस्थ जीवन जीने वाले लोगों के लिए धार्मिक, नैतिक, और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान किया गया है। यह पुस्तक बताती है कि कैसे एक साधारण व्यक्ति अपने दैनिक जीवन को धर्म, भक्ति, सेवा और संयम के साथ जीकर मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर हो सकता है।


🏡 मुख्य विषयवस्तु:

  1. गृहस्थ जीवन की वास्तविकता और महत्व

  2. पति-पत्नी के कर्तव्य और मर्यादाएँ

  3. संतान के प्रति उत्तरदायित्व

  4. धन-संपत्ति का सदुपयोग कैसे करें?

  5. धार्मिक और साधन-युक्त जीवन

  6. गृहस्थ होते हुए वैराग्य और भक्ति की साधना

  7. सदाचार, संयम और त्याग का महत्व

  8. सत्संग, स्वाध्याय और सेवा का समन्वय

  9. शांति और संतोषपूर्वक जीवन जीने की कला


🌟 विशेषताएँ:

  • सरल भाषा और स्पष्ट दृष्टिकोण स्वामीजी की शैली में जटिल बातों को भी सहज ढंग से समझाया गया है।

  • उदाहरणों से युक्त – व्यावहारिक दृष्टांतों से समझाया गया है कि एक गृहस्थ को किन-किन परिस्थितियों में कैसे व्यवहार करना चाहिए।

  • सभी आयु-वर्गों के लिए उपयोगी – विशेषतः गृहस्थ जीवन में रत वे लोग जो धर्म और आत्मोन्नति की ओर बढ़ना चाहते हैं।


🧘 उद्देश्य:

इस पुस्तक का उद्देश्य यह है कि व्यक्ति गृहस्थ रहते हुए भी आत्म-कल्याण कर सकता है। उसे त्यागी या सन्यासी बनने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी वह धर्म, योग और मोक्ष की ओर बढ़ सकता है।


✨ निष्कर्ष:

‘गृहस्थ में कैसे रहें?’ एक ऐसी अनुपम पुस्तक है जो हर गृहस्थ के लिए दर्पण और मार्गदर्शक का कार्य करती है। यह पुस्तक जीवन के हर मोड़ पर सत्य, संयम, सेवा और संतोष की भावना को बनाए रखते हुए जीने की प्रेरणा देती है।

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