कुण्ड निर्माण स्वाहाकार पद्धति /Kund Nirmaan Svaahaakaar Paddhati

320.00

आज से लगभग चौबीस वर्ष पूर्व इस ‘कुण्डनिर्माण स्वाहाकार पद्धति:’ का प्रकाशन श्री ठाकुर प्रसाद पुस्तक भण्डार, कचौड़ीगली, वाराणसी के द्वारा हुआ था। उसके पश्चात्‌ इसके द्वितीय संस्करण का प्रकाशन सन्‌ २००१ में हुआ। इस समय जो यह कृति मेरे द्वारा प्रकाशित की जा रही है, इसमें विषयों का क्रम और भी बढ़ा दिया गया है और इसे पूर्णरूप से संशोधित व परिवर्द्धित भी किया गया है। इस पुस्तक को इस रूप में लाने का पूर्ण श्रेय श्री ठाकुर प्रसाद पुस्तक भण्डार, कचौड़ीगली, वाराणसी के संचालक श्रीयुत्‌ रूपेश अग्रवाल को ही है। उन्हीं के अनुरोध पर मैंने इस पुस्तक का विस्तार किया है।

पिताश्री के द्वारा कुण्डनिर्माण के विषय में लिखित सभी लेखों को एकत्रित करने के उपरान्त ही मैंने इस पुस्तक का संशोधन व सम्पादन किया है। जिस प्रकार से नर एवं नारी एक-दूसरे के पूरक कहे गये हैं, उसी प्रकार से यज्ञ एवं कुण्ड भी एक-दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि यदि यज्ञ में कुण्ड की रचना न की जाय, तो यज्ञ का होना असम्भव ही है। इसलिए यज्ञ एवं कुण्ड को एक-दूसरे का पूरक कहा जाय, तो यह अतिशयोक्ति न होगी।

प्रस्तुत पुस्तक में तीन परिच्छेदों का समावेश है, इसके प्रथम परिच्छेद में विविध प्रकार कुण्डों के निर्माण की विधि और कुण्ड से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण विषयों पर विवेचन है। इसके द्वितीय परिच्छेद में मण्डप-निर्माण, मण्डप के विषय में विशेषविचार, मण्डप-पूजन, अग्निस्थापन के विषय में विचार, अग्निस्थापनविधि और चतुर्वेदोक्त मन्त्रों द्वारा वास्तुपूजन, योगिनीपूजन और प्रधान वेदीपूजन का सन्निवेश है। इसके तृतीय परिच्छेद में यज्ञों में होनेवाली आहुतियों पर विवेचन, स्मार्तयज्ञों में होनेवाले न्यास, स्मार्तयज्ञों में होनेवाले हवन-मन्त्र तथा महत्त्वपूर्ण यज्ञों की सहस्ननामावली द्वारा हवनविधि दी गई है। परिशिष्टभाग में विशेष विषयों का समावेश किया गया है।

यदि इस पुस्तक में किसी भी प्रकार की कोई त्रुटि रह गई हो तो मुझे अवश्य ही सूचित करने की कृपा करें, जिससे कि मैं द्वितीय संस्करण में उन त्रुटियों को समाप्त करने की चेष्टा कर सकूँ।

Description

आज से लगभग चौबीस वर्ष पूर्व इस ‘कुण्डनिर्माण स्वाहाकार पद्धति:’ का प्रकाशन श्री ठाकुर प्रसाद पुस्तक भण्डार, कचौड़ीगली, वाराणसी के द्वारा हुआ था। उसके पश्चात्‌ इसके द्वितीय संस्करण का प्रकाशन सन्‌ २००१ में हुआ। इस समय जो यह कृति मेरे द्वारा प्रकाशित की जा रही है, इसमें विषयों का क्रम और भी बढ़ा दिया गया है और इसे पूर्णरूप से संशोधित व परिवर्द्धित भी किया गया है। इस पुस्तक को इस रूप में लाने का पूर्ण श्रेय श्री ठाकुर प्रसाद पुस्तक भण्डार, कचौड़ीगली, वाराणसी के संचालक श्रीयुत्‌ रूपेश अग्रवाल को ही है। उन्हीं के अनुरोध पर मैंने इस पुस्तक का विस्तार किया है।

पिताश्री के द्वारा कुण्डनिर्माण के विषय में लिखित सभी लेखों को एकत्रित करने के उपरान्त ही मैंने इस पुस्तक का संशोधन व सम्पादन किया है। जिस प्रकार से नर एवं नारी एक-दूसरे के पूरक कहे गये हैं, उसी प्रकार से यज्ञ एवं कुण्ड भी एक-दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि यदि यज्ञ में कुण्ड की रचना न की जाय, तो यज्ञ का होना असम्भव ही है। इसलिए यज्ञ एवं कुण्ड को एक-दूसरे का पूरक कहा जाय, तो यह अतिशयोक्ति न होगी।

प्रस्तुत पुस्तक में तीन परिच्छेदों का समावेश है, इसके प्रथम परिच्छेद में विविध प्रकार कुण्डों के निर्माण की विधि और कुण्ड से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण विषयों पर विवेचन है। इसके द्वितीय परिच्छेद में मण्डप-निर्माण, मण्डप के विषय में विशेषविचार, मण्डप-पूजन, अग्निस्थापन के विषय में विचार, अग्निस्थापनविधि और चतुर्वेदोक्त मन्त्रों द्वारा वास्तुपूजन, योगिनीपूजन और प्रधान वेदीपूजन का सन्निवेश है। इसके तृतीय परिच्छेद में यज्ञों में होनेवाली आहुतियों पर विवेचन, स्मार्तयज्ञों में होनेवाले न्यास, स्मार्तयज्ञों में होनेवाले हवन-मन्त्र तथा महत्त्वपूर्ण यज्ञों की सहस्ननामावली द्वारा हवनविधि दी गई है। परिशिष्टभाग में विशेष विषयों का समावेश किया गया है।

यदि इस पुस्तक में किसी भी प्रकार की कोई त्रुटि रह गई हो तो मुझे अवश्य ही सूचित करने की कृपा करें, जिससे कि मैं द्वितीय संस्करण में उन त्रुटियों को समाप्त करने की चेष्टा कर सकूँ।

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