Description
अमृत निज़ार्र
होगा बही जो श्रीभगवान के मंगल विधानके अनुसार होना हे एक पलका भी भरोसा नहीं हे मुमनुष्य सोचता कुछ और हे होजाता कुछ और हे
“अमृत निर्झरी” एक संस्कृत कविता है जो आध्यात्मिक भावनाओं और धार्मिक विचारों को व्यक्त करती है। इस कविता में आत्मा के अनंत और अविनाशी स्वरूप का वर्णन किया गया है। “अमृत निर्झरी” शब्दों का अर्थ होता है “अमृत की धारा” या “अमृत की झरना”।
इस कविता में, संसारिक जीवन के विभिन्न पहलुओं से परे, आत्मा की अनन्तता और अविनाशिता का महत्वपूर्ण संदेश है। यह कविता मनुष्य को अपने अस्तित्व की गहराई और उसके परमार्थिक लक्ष्य को प्राप्त करने की महत्वपूर्णता को समझाती है।
“अमृत निर्झरी” कविता का अध्ययन और समझने से व्यक्ति को आत्मज्ञान और आत्मसमर्पण की महत्वपूर्णता का अनुभव होता है। यह कविता आत्मा के अद्वितीय और अमर स्वरूप को समझाने में मदद करती है और उसे अधिक आत्मज्ञान और आनंद का अनुभव कराती है।
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