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अपात्र को भी भगवत्प्राप्ति
(Apātra ko bhī Bhagavat-prāpti)
भगवद्प्राप्ति का अर्थ है भगवान की प्राप्ति — परम सत्य, प्रेम और आनंद का साक्षात्कार। सामान्यतः यह माना जाता है कि केवल पात्र, यानी योग्यता रखने वाले, शुद्ध आचरण वाले, ज्ञानी, भक्तिपूर्ण या तपस्वी व्यक्ति ही भगवान की कृपा या दर्शन के अधिकारी होते हैं। किंतु भारतीय भक्तिधारा, विशेषकर संत परंपरा और श्रीमद्भागवत आदि शास्त्र यह स्पष्ट करते हैं कि भगवान की कृपा सीमित नहीं होती — वह अपात्र को भी मिल सकती है, यदि उसमें सच्ची भावनाएँ, शरणागति और हृदय की पुकार हो।
प्रमुख बिंदु:
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भगवान कृपानिधान हैं:
भगवान किसी की जाति, योग्यता, धन, विद्या या तप को देखकर कृपा नहीं करते। वे केवल हृदय की निष्कपट पुकार पर ही प्रसन्न होते हैं। -
उदाहरण:
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शबरी – एक भीलनी, जो समाज की दृष्टि में अपात्र थी, परंतु उसकी प्रेमभक्ति के कारण श्रीराम स्वयं उसके आश्रम पधारे।
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ध्रुव – एक बालक जिसे राजमहल से निकाल दिया गया था, पर उसकी दृढ़ भक्ति से भगवान विष्णु प्रकट हुए।
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गजेंद्र मोक्ष – एक हाथी, जिसने संकट में भगवान को पुकारा और भगवान तुरंत आ गए।
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Additional information
Weight | 0.2 g |
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