अन्त्यकर्म श्राद्ध प्रकाश/ Antyakarm Shraddh Prakash

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श्राद्ध हिन्दु एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरो के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौशल, आदि हमें विरासत में मिलें हैं, उनका हम पर न चुकाये जा सकने वाला ऋण हैं। वे हमारे पूर्वज पूजनीय हैं।

माता और पिता दोनों का श्राद्ध उनके देहावसान के दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार किया जाता है। इसके अलावा प्रतिवर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है। ‘पितर’ से आधय माता-पिता, नाना-नानी, दादी-दादी, और उनके पहले उत्पन्न सभी सम्बन्धी (मातृपक्ष और पितृपक्ष दोनों के) हैं।

मैसूर के कुरुवारू और नीलगिरि पहाड़ियों के येरुकुल अपने देवताओं के साथ पितरों को भी बलि देते हैं। मुंबई राज्य के ढोर कठकरी तथा अन्य हिंदू कबीले बिना छिले नारियल का पूर्वज मानकर उसकी पूजा करते हैं

अन्त्यकर्म

अन्त्यकर्म या अंत्येष्टि या दाह संस्कार 16 हिन्दु धर्म संस्कारों में षोडश आर्थात् अंतिम संस्कार है। मृत्यु के पश्चात वेदमंत्रों के उच्चारण द्वारा किए जाने वाले इस संस्कार को दाह-संस्कार, श्मशानकर्म तथा अन्त्येष्टि-क्रिया आदि भी कहते हैं। इसमें मृत्यु के बाद शव को विधी पूर्वक अग्नि को समर्पित किया जाता है। यह प्रत्एक हिंदू के लिए आवश्यक है। केवल संन्यासी-महात्माओं के लिए—निरग्रि होने के कारण शरीर छूट जाने पर भूमिसमाधि या जलसमाधि आदि देने का विधान है। कहीं-कहीं संन्यासी का भी दाह-संस्कार किया जाता है और उसमें कोई दोष नहीं माना जाता है।

कुछ लोगों की धारणा है कि सुकृत्यों एवं दुष्कृत्यों के फलस्वरूप शरीर के अतिरिक्त प्राणी का विद्यमानांश क्रम से स्वर्ग एवं नरक में जाता है। कुछ लोग आवागमन एवं पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं।

Description

श्राद्ध हिन्दु एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरो के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौशल, आदि हमें विरासत में मिलें हैं, उनका हम पर न चुकाये जा सकने वाला ऋण हैं। वे हमारे पूर्वज पूजनीय हैं।

माता और पिता दोनों का श्राद्ध उनके देहावसान के दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार किया जाता है। इसके अलावा प्रतिवर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है। ‘पितर’ से आधय माता-पिता, नाना-नानी, दादी-दादी, और उनके पहले उत्पन्न सभी सम्बन्धी (मातृपक्ष और पितृपक्ष दोनों के) हैं।

मैसूर के कुरुवारू और नीलगिरि पहाड़ियों के येरुकुल अपने देवताओं के साथ पितरों को भी बलि देते हैं। मुंबई राज्य के ढोर कठकरी तथा अन्य हिंदू कबीले बिना छिले नारियल का पूर्वज मानकर उसकी पूजा करते हैं

अन्त्यकर्म

अन्त्यकर्म या अंत्येष्टि या दाह संस्कार 16 हिन्दु धर्म संस्कारों में षोडश आर्थात् अंतिम संस्कार है। मृत्यु के पश्चात वेदमंत्रों के उच्चारण द्वारा किए जाने वाले इस संस्कार को दाह-संस्कार, श्मशानकर्म तथा अन्त्येष्टि-क्रिया आदि भी कहते हैं। इसमें मृत्यु के बाद शव को विधी पूर्वक अग्नि को समर्पित किया जाता है। यह प्रत्एक हिंदू के लिए आवश्यक है। केवल संन्यासी-महात्माओं के लिए—निरग्रि होने के कारण शरीर छूट जाने पर भूमिसमाधि या जलसमाधि आदि देने का विधान है। कहीं-कहीं संन्यासी का भी दाह-संस्कार किया जाता है और उसमें कोई दोष नहीं माना जाता है।

कुछ लोगों की धारणा है कि सुकृत्यों एवं दुष्कृत्यों के फलस्वरूप शरीर के अतिरिक्त प्राणी का विद्यमानांश क्रम से स्वर्ग एवं नरक में जाता है। कुछ लोग आवागमन एवं पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं।

Additional information

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2 reviews for अन्त्यकर्म श्राद्ध प्रकाश/ Antyakarm Shraddh Prakash

  1. Bhupendra

    Ecxilent

  2. Bhupendra

    Excellent

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