अथर्व वेद/Atharvaveda (Set of 2 Books)

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Description

अथवृवेद आथत्म ज्योतिषी धार्मिक और लेलिक ज्ञान का अनुपम समन्वय

अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन अथर्ववेद में है। अथर्ववेद गृहस्थाश्रम के अंदर पति-पत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों, मान-मर्यादाओं का उत्तम विवेचन करता है। अथर्ववेद में ब्रह्म की उपासना संबन्धी बहुत से मन्त्र हैं।

सामवेद हृदय का वेद है और अथर्ववेद उदर-पेट का वेद है। उदर विकारों से ही नाना प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं। इस वेद में नाना प्रकार की ओषधियों का वर्णन करके शरीर को नीरोग, स्वस्थ और शान्त रखने के उपायों का वर्णन है।

“अथर्व वेद” का शूरुआत संस्कृत के अन्य वेदों की तरह गायत्री मंत्र से नहीं होती है। यह वेद अन्य वेदों के बराबर आयातकर्ता है। अथर्व वेद के मंत्र साधना के लिए प्रशंसा और प्रार्थनाओं की ध्वनि सुनाई देती है। यह वेद काल में एक उपनिषद के रूप में भी उल्लेखित है, जो कि अन्य वेदों की उपनिषदों की तरह है।

अथर्व वेद का विषय अत्यंत विविध है और इसमें मुख्य रूप से उपाय, उपचार, धर्म, विज्ञान, और आयुर्वेद के निरूपण हैं। इसमें सूक्त, मंत्र, और श्लोकों के संग्रह होते हैं, जो विभिन्न उद्देश्यों के लिए प्रयोग किए जाते हैं। अथर्व वेद भूत-प्राचीन आयुर्वेद के महत्वपूर्ण स्रोत में से एक है, और इसमें उच्च कोटि के आयुर्वेदिक औषधि से संबंधित ज्ञान और विज्ञान दिया गया है।

 

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