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साधन का अर्थ होता है – साध्य (उद्देश्य) की प्राप्ति के लिए किया गया प्रयत्न, अभ्यास या उपाय। आध्यात्मिक मार्ग में साधन का अत्यंत महत्व होता है क्योंकि यही वह मार्ग है जिससे साधक परम लक्ष्य – ईश्वर की प्राप्ति या आत्मसाक्षात्कार – तक पहुँच सकता है।
हिंदू धर्म एवं भक्ति परंपरा में साधन के दो प्रधान सूत्र बताए गए हैं, जो किसी भी साधक के लिए अनिवार्य माने गए हैं:
1. श्रद्धा (Shraddha)
अर्थ: श्रद्धा का अर्थ है – गुरु, शास्त्र और भगवान के वचनों पर अटल विश्वास।
विशेषता:
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यह साधना का मूल आधार है।
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बिना श्रद्धा के कोई भी साधक आगे नहीं बढ़ सकता।
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भगवद्गीता (४.३९) में श्रीकृष्ण कहते हैं –
“श्रद्धावान् लभते ज्ञानं…” अर्थात श्रद्धावान व्यक्ति ही ज्ञान को प्राप्त करता है। -
श्रद्धा से ही मन एकाग्र होता है और साधक में धैर्य, उत्साह और समर्पण उत्पन्न होता है।
2. सबुरी (Saburi) या धैर्य (Dhairya)
अर्थ: सबुरी का अर्थ है – धैर्यपूर्वक साधना करते रहना, परिणाम की चिंता न करते हुए।
विशेषता:
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ईश्वर की कृपा और साधना का फल एक निश्चित समय पर मिलता है, तुरंत नहीं।
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यदि साधक अधीर हो जाए तो वह बीच मार्ग में ही रुक सकता है।
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श्री साईं बाबा कहा करते थे – “श्रद्धा और सबुरी – यही मेरे दो मंत्र हैं।”
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धैर्य से साधक को विपरीत परिस्थितियों में भी अपने पथ पर टिके रहने की शक्ति मिलती है।
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