सत्संग की मार्मिक बातें/ Satsang ki Marmik Baten

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Description

सभी सदग्रन्थ इस बातपर प्रकाश डालते हैं और विशेषतासे प्रतिपादन करते हैं कि मनुष्य जीवनका एकमात्र उद्देश्य भगवत्प्राप्ति है । उपनिषद्, गीता, रामायण सभीमें यह बात विशेषतासे कही गयी है । इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति न चेदिहावेदीन्महती विनष्टि । यदि इस मनुष्य जीवनमें परमात्मतत्त्वको जान लिया तो ठीक है नहीं तो महान् हानि है । जो यह बात उपनिषद आदिमें कही गयी है, इसी बातको जीवमुक्त महापुरुष कहते हैं तो उस बातमें एक विशेष महत्त्व हो जाता है । वे जो कुछ कहते हैं, स्वयं अनुभव करके कहते हैं और जिस साधनसे उन्होंने अनुभव किया है, उसीपर चलनेके लिये हमें प्रेरणा देते हैं ।

परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाका भगवान्में इतना प्रेम हुआ कि भगवान्ने उनके सामने प्रत्यक्ष प्रकट होकर साकाररूपसे दर्शन दिये । इसलिये वे जो बातें कहते हैं उनसे हमें कितना अधिक आध्यात्मिक लाभ हो सकता है, यह हम स्वयं विचार करें । श्रद्धेय श्रीगोयन्दकाजीका एकमात्र उद्देश्य हमलोगोंका जन्म मरणसे उद्धार करनेका था तथा जो आनन्द उन्हें मिला, वह हमें भी मिल जाय । अत उन्हें सत्संग बहुत प्रिय था और इसका आयोजन वे स्वर्गाश्रममें गंगाजीके पावन तटपर ग्रीष्म ऋतुमें करते थे । वहाँपर तथा अन्यत्र जो भी प्रवचन मनुष्योंके कल्याणके लिये उन्होंने दिये, उनमेंसे कुछको यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है, जिससे हमलोग अब भी उनसे आध्यात्मिक लाभ उठा लें । हमें आशा है, पाठकगण इन्हें पढ़ेंगे और मनन करेंगे ।

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