Description
आपका मन जहाँ है, वहीं आप हैं— इस बात को गाँठ बाँधकर याद कर लें। यहाँ बैठे हुए आप यदि कलकत्ते दूकान का चिन्तन करते हैं तो आप असल में कलकत्ते में ही हैं। इसी प्रकार यदि शरीर यहाँ है, पर मन शरीर को छोड़कर दिव्य वृन्दावन-धाम की लीला में है तो आप वृन्दावनधाम में ही हैं। प्रारब्ध पूरा होने पर शरीर गिर जायगा और आप सदा के लिये उसी लीला में सम्मिलित हो जायँगे। सब कुछ आपकी इच्छा पर निर्भर है। इस अटूट सिद्धान्त को मानकर साधना में लगे रहने से ही उन्नति हो सकती है।
Additional information
Weight | 0.3 g |
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