त्रिपिंडी श्राद्ध पद्धति/ Tripindi Shraddh Paddhati

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Description

प्रस्तुत लेख में  त्रिपिंडी श्राद्ध’ के विषय में अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन पढें । इसमें मुख्य रुप से इन विधियों के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण सूचनाएं, विधि का उद्देश्य, योग्य काल, योग्य स्थान, विधि करने की पद्धति एवं विधि करने से हुई अनुभूतियों का समावेश है ।

हमारे लिए अज्ञात, सद्गति को प्राप्त न हुए अथवा दुुर्गति को प्राप्त तथा कुल के लोगों को कष्ट देनेवाले पितरों को, उनका प्रेतत्व दूर होकर सद्गति मिलने के लिए अर्थात भूमि, अंतरिक्ष एवं आकाश, तीनों स्थानों में स्थित आत्माओं को मुक्ति देने हेतु त्रिपिंडी करने की पद्धति है । श्राद्ध साधारणतः एक पितर अथवा पिता-पितामह (दादा)-प्रपितामह (परदादा) के लिए किया जाता है । अर्थात, यह तीन पीढियों तक ही सीमित होता है । परंतु त्रिपिंडी श्राद्ध से उसके पूर्व की पीढियों के पितरों को भी तृप्ति मिलती है । प्रत्येक परिवार में यह विधि प्रति बारह वर्ष करें; परंतु जिस परिवार में पितृदोष अथवा पितरों द्वारा होनेवाले कष्ट हों, वे यह विधि दोष निवारण हेतु करें ।