चाचा श्री हित वृंदावनदास जी की वाणी/Chacha Sri Hita Vrindavandas ji ki Vani

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Description

विक्रम की १३वीं शताब्दी से लेकर २०वीं शताब्दी तक भारत के मध्यदेश की मुख्य साहित्यिक भाषा एवं साथ ही साथ समस्त भारत की साहित्यिक भाषा थी। विभिन्न स्थानीय भाषाई समन्वय के साथ समस्त भारत में विस्तृत रूप से प्रयुक्त होने वाली हिन्दी का पूर्व रूप यह ‘ब्रजभाषा‘ अपने विशुद्ध रूप में आज भी आगरा, धौलपुर, करौली , मथुरा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है जिसे हम ‘केंद्रीय ब्रजभाषा’ के नाम से भी पुकार सकते हैं।

चाचा श्री हित वृंदावनदास जी की वाणी भारतीय संत परंपरा में एक महत्वपूर्ण नाम है। वह आध्यात्मिक गुरु थे जो भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे और उनकी भक्ति में विश्वास रखते थे। चाचा श्री हित वृंदावनदास जी के उपदेशों में भगवान के प्रेम और उनके भक्ति में समर्पण की महत्वपूर्ण बातें शामिल होती हैं। उनकी वाणी के माध्यम से भक्तों को भगवान के प्रति श्रद्धा और प्रेम में विश्वास को मजबूत करने की सीख मिलती है। उनकी वाणी का आध्यात्मिक महत्व भारतीय संत समुदाय में अत्यंत उच्च माना जाता है।

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