आदित्यहृदय स्तोत्रम्/ Aadityahridaya Stotram

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Description

“आदित्यहृदय स्तोत्रम्” संस्कृत में एक प्रमुख वेदिक स्तोत्र है जो सूर्य देवता की महिमा और महत्त्व का वर्णन करता है। यह स्तोत्र आदित्यहृदय ऋषि अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान राम को श्रीरामचंद्र प्रसन्न करने के लिए उपदेशित किया गया था। इसे “रामायण” के युद्ध कांड में प्रस्थानत्रय सम्मेलन में स्थित होते समय भगवान राम ने सुना था।

आदित्यहृदय स्तोत्रम् में सूर्य देवता की गुणगान, शक्ति, और महिमा का वर्णन है। इसके पठन से भक्त को शक्ति, साहस, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। यह स्तोत्र उपासकों को शांति और सफलता की प्राप्ति में मदद करता है।

आदित्यहृदय स्तोत्रम् के कुछ पंक्तियों का अर्थिक अनुवाद निम्नलिखित होता है:

“ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्। रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥१३॥”

“उसके बाद जब युद्ध के श्रम से थक गए, तब ध्यान से स्थित हुए। रावण को युद्ध के लिए खड़ा देखकर स्थित हो गए।॥१३॥”

आदित्यहृदय स्तोत्रम् को उपासना, ध्यान, और मनन के लिए भी उपयोग किया जाता है। इसके प्रतिदिन का पाठ शांति और सफलता की प्राप्ति में मदद कर सकता है।

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