आत्मोद्धार के साधन/ Aatmoddhar ke Sadhan

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आत्मोद्धार के साधन (Aatmoddhar ke Sadhan)  

परिचय:
आत्मोद्धार का अर्थ हैआत्मा का कल्याण, शुद्धिकरण और परम लक्ष्य (मोक्ष या भगवत्प्राप्ति) की ओर उन्नति। आत्मोद्धार एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिससे मनुष्य अपने भीतर छुपे दिव्य स्वरूप को पहचानता है और संसार के बंधनों से मुक्त होकर परम शांति प्राप्त करता है। इसके लिए कुछ विशेष साधन अपनाने होते हैं।


मुख्य आत्मोद्धार के साधन:

  1. सत्संग (संतों और शास्त्रों की संगति):
    सत्संग आत्मोद्धार का प्रमुख साधन है। संतों की वाणी और शास्त्रों की शिक्षा आत्मा को सही दिशा देती है और अज्ञान का नाश करती है।

  2. स्वाध्याय (धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन):
    भगवद्गीता, उपनिषद, रामायण, भागवत आदि शास्त्रों का नियमित अध्ययन आत्मा को शुद्ध करता है और ज्ञान का प्रकाश देता है।

  3. नामस्मरण एवं जप:
    भगवान के नाम का जप (जैसे – राम, कृष्ण, नारायण आदि) अत्यंत प्रभावशाली साधन है। यह चित्त को शुद्ध करता है और आत्मा को ईश्वर से जोड़ता है।

  4. ध्यान और साधना:
    नियमित ध्यान से आत्मा की शक्ति जागृत होती है। यह आत्मचिंतन का माध्यम बनता है और आंतरिक शांति प्रदान करता है।

  5. वैराग्य (संसार से अनासक्ति):
    आत्मोद्धार के लिए संसार के विषय-विकारों से मन को हटाकर भगवान की ओर लगाना आवश्यक है।

  6. सेवा एवं परोपकार:
    निःस्वार्थ सेवा, दया, करुणा आदि गुणों का विकास आत्मा को ऊँचा उठाता है और अहंकार का क्षय करता है।

  7. संयम एवं सदाचार:
    इंद्रियों पर नियंत्रण और नैतिक आचरण आत्मिक प्रगति के लिए अनिवार्य हैं। ब्रह्मचर्य, सत्य, अहिंसा, क्षमा आदि गुण आत्मा को निर्मल करते हैं।

 

Description

आत्मोद्धार के साधन (Aatmoddhar ke Sadhan)  

परिचय:
आत्मोद्धार का अर्थ हैआत्मा का कल्याण, शुद्धिकरण और परम लक्ष्य (मोक्ष या भगवत्प्राप्ति) की ओर उन्नति। आत्मोद्धार एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिससे मनुष्य अपने भीतर छुपे दिव्य स्वरूप को पहचानता है और संसार के बंधनों से मुक्त होकर परम शांति प्राप्त करता है। इसके लिए कुछ विशेष साधन अपनाने होते हैं।


मुख्य आत्मोद्धार के साधन:

  1. सत्संग (संतों और शास्त्रों की संगति):
    सत्संग आत्मोद्धार का प्रमुख साधन है। संतों की वाणी और शास्त्रों की शिक्षा आत्मा को सही दिशा देती है और अज्ञान का नाश करती है।

  2. स्वाध्याय (धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन):
    भगवद्गीता, उपनिषद, रामायण, भागवत आदि शास्त्रों का नियमित अध्ययन आत्मा को शुद्ध करता है और ज्ञान का प्रकाश देता है।

  3. नामस्मरण एवं जप:
    भगवान के नाम का जप (जैसे – राम, कृष्ण, नारायण आदि) अत्यंत प्रभावशाली साधन है। यह चित्त को शुद्ध करता है और आत्मा को ईश्वर से जोड़ता है।

  4. ध्यान और साधना:
    नियमित ध्यान से आत्मा की शक्ति जागृत होती है। यह आत्मचिंतन का माध्यम बनता है और आंतरिक शांति प्रदान करता है।

  5. वैराग्य (संसार से अनासक्ति):
    आत्मोद्धार के लिए संसार के विषय-विकारों से मन को हटाकर भगवान की ओर लगाना आवश्यक है।

  6. सेवा एवं परोपकार:
    निःस्वार्थ सेवा, दया, करुणा आदि गुणों का विकास आत्मा को ऊँचा उठाता है और अहंकार का क्षय करता है।

  7. संयम एवं सदाचार:
    इंद्रियों पर नियंत्रण और नैतिक आचरण आत्मिक प्रगति के लिए अनिवार्य हैं। ब्रह्मचर्य, सत्य, अहिंसा, क्षमा आदि गुण आत्मा को निर्मल करते हैं।

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