कर्म रहस्य/ Karm Rahassya

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कर्म-रहस्य” एक अत्यंत विचारशील और गूढ़ आध्यात्मिक कृति है, जिसमें स्वामी रामसुखदास जी महाराज ने कर्म, कर्तव्य, आशक्ति, और निष्कामता जैसे विषयों का सरल, तर्कसंगत और व्यावहारिक विवेचन किया है। यह पुस्तक न केवल अध्यात्म-मार्ग पर चलने वालों के लिए उपयोगी है, बल्कि सामान्य गृहस्थ जनों के लिए भी कर्म करने की सही दृष्टि प्रदान करती है।

भगवद्गीता के सिद्धांतों के आलोक में यह पुस्तक स्पष्ट करती है कि कर्म क्या है, क्यों करना चाहिए, कैसे करना चाहिए, और किस भाव से किया गया कर्म बंधनकारक नहीं होता। यह पुस्तक आध्यात्मिकता और कर्मयोग के बीच का समन्वय स्थापित करती है।


🌟 मुख्य विषयवस्तु:

  1. कर्म की परिभाषा और स्वरूप

    • क्या कर्म केवल शारीरिक क्रिया है?

    • क्या विचार और भावना भी कर्म में आते हैं?

    • अच्छे और बुरे कर्म का निर्धारण कैसे हो?

  2. कर्म और फल का संबंध

    • कर्म का फल किसे और कैसे प्राप्त होता है?

    • क्या हर कर्म का फल अवश्य मिलता है?

    • कर्म करते हुए फल की आशा करना उचित है या नहीं?

  3. निष्काम कर्म का महत्व

    • बिना फल की कामना के कर्म कैसे करें?

    • कर्म और त्याग का सही समन्वय क्या है?

  4. कर्तव्य पालन का दृष्टिकोण

    • जीवन में कर्तव्य को कैसे पहचाने?

    • क्या केवल धर्मग्रंथों का अध्ययन ही पर्याप्त है?

  5. आध्यात्मिक उन्नति में कर्म की भूमिका

    • क्या कर्म ही साधना है?

    • क्या केवल ध्यान और भक्ति ही पर्याप्त हैं?


🧘‍♂️ पुस्तक की उपयोगिता:

  • सामान्य गृहस्थों को जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त करने में सहायता देती है

  • साधकों के लिए यह एक सच्ची दिशा-दर्शिका है जो भक्ति और कर्म के बीच का पुल बनाती है

  • शिक्षकों, विद्यार्थियों और कर्मशील व्यक्तियों को यह बताती है कि कैसे कर्म करते हुए भी आत्मिक उन्नति की जा सकती है

  • श्रीमद्भगवद्गीता के पाठकों को इसका व्यावहारिक रूप समझाती है


📚 भाषा और शैली:

स्वामी रामसुखदास जी की भाषा अत्यंत सरल, सहज और प्रभावशाली है। वे दार्शनिक विषयों को भी इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कि एक सामान्य व्यक्ति भी उन्हें न केवल समझ सके, बल्कि जीवन में उतार भी सके।


🪔 उपसंहार:

कर्म-रहस्य केवल एक वैचारिक पुस्तक नहीं, बल्कि यह जीवन जीने की एक आध्यात्मिक पद्धति सिखाती है। यह हमें कर्म करते हुए ईश्वर के निकट ले जाने की कला सिखाती है। जो व्यक्ति इस पुस्तक के सिद्धांतों को अपनाता है, वह न केवल जीवन में सफल होता है, बल्कि आत्मिक शांति और परम उद्देश्य की ओर भी अग्रसर होता है।

Description

कर्म-रहस्य” एक अत्यंत विचारशील और गूढ़ आध्यात्मिक कृति है, जिसमें स्वामी रामसुखदास जी महाराज ने कर्म, कर्तव्य, आशक्ति, और निष्कामता जैसे विषयों का सरल, तर्कसंगत और व्यावहारिक विवेचन किया है। यह पुस्तक न केवल अध्यात्म-मार्ग पर चलने वालों के लिए उपयोगी है, बल्कि सामान्य गृहस्थ जनों के लिए भी कर्म करने की सही दृष्टि प्रदान करती है।

भगवद्गीता के सिद्धांतों के आलोक में यह पुस्तक स्पष्ट करती है कि कर्म क्या है, क्यों करना चाहिए, कैसे करना चाहिए, और किस भाव से किया गया कर्म बंधनकारक नहीं होता। यह पुस्तक आध्यात्मिकता और कर्मयोग के बीच का समन्वय स्थापित करती है।


🌟 मुख्य विषयवस्तु:

  1. कर्म की परिभाषा और स्वरूप

    • क्या कर्म केवल शारीरिक क्रिया है?

    • क्या विचार और भावना भी कर्म में आते हैं?

    • अच्छे और बुरे कर्म का निर्धारण कैसे हो?

  2. कर्म और फल का संबंध

    • कर्म का फल किसे और कैसे प्राप्त होता है?

    • क्या हर कर्म का फल अवश्य मिलता है?

    • कर्म करते हुए फल की आशा करना उचित है या नहीं?

  3. निष्काम कर्म का महत्व

    • बिना फल की कामना के कर्म कैसे करें?

    • कर्म और त्याग का सही समन्वय क्या है?

  4. कर्तव्य पालन का दृष्टिकोण

    • जीवन में कर्तव्य को कैसे पहचाने?

    • क्या केवल धर्मग्रंथों का अध्ययन ही पर्याप्त है?

  5. आध्यात्मिक उन्नति में कर्म की भूमिका

    • क्या कर्म ही साधना है?

    • क्या केवल ध्यान और भक्ति ही पर्याप्त हैं?


🧘‍♂️ पुस्तक की उपयोगिता:

  • सामान्य गृहस्थों को जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त करने में सहायता देती है

  • साधकों के लिए यह एक सच्ची दिशा-दर्शिका है जो भक्ति और कर्म के बीच का पुल बनाती है

  • शिक्षकों, विद्यार्थियों और कर्मशील व्यक्तियों को यह बताती है कि कैसे कर्म करते हुए भी आत्मिक उन्नति की जा सकती है

  • श्रीमद्भगवद्गीता के पाठकों को इसका व्यावहारिक रूप समझाती है


📚 भाषा और शैली:

स्वामी रामसुखदास जी की भाषा अत्यंत सरल, सहज और प्रभावशाली है। वे दार्शनिक विषयों को भी इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कि एक सामान्य व्यक्ति भी उन्हें न केवल समझ सके, बल्कि जीवन में उतार भी सके।


🪔 उपसंहार:

कर्म-रहस्य केवल एक वैचारिक पुस्तक नहीं, बल्कि यह जीवन जीने की एक आध्यात्मिक पद्धति सिखाती है। यह हमें कर्म करते हुए ईश्वर के निकट ले जाने की कला सिखाती है। जो व्यक्ति इस पुस्तक के सिद्धांतों को अपनाता है, वह न केवल जीवन में सफल होता है, बल्कि आत्मिक शांति और परम उद्देश्य की ओर भी अग्रसर होता है।

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