श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण /Srimadvalmikiy Ramayana

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण सम्पूर्ण सचित्र केवल हिंदी अनुबाद मोटा टाईप

वाल्मीकीय रामायण संस्कृत साहित्य का एक आरम्भिक महाकाव्य है जो संस्कृत भाषा में अनुष्टुप छन्दों में रचित है। इसमें श्रीराम के चरित्र का उत्तम एवं वृहद् विवरण काव्य रूप में उपस्थापित हुआ है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित होने के कारण इसे ‘वाल्मीकीय रामायण’ कहा जाता है।

वर्तमान में राम के चरित्र पर आधारित जितने भी ग्रन्थ उपलब्ध हैं उन सभी का मूल महर्षि वाल्मीकि कृत ‘वाल्मीकीय रामायण’ ही है। ‘वाल्मीकीय रामायण’ के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को ‘आदिकवि’ माना जाता है और इसीलिए यह महाकाव्य ‘आदिकाव्य’ माना गया है।यह महाकाव्य भारतीय संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आयामों को प्रतिबिम्बित करने वाला होने से साहित्य रूप में अक्षय निधि है।

त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि के श्रीमुख से साक्षात वेदों का ही श्रीमद्रामायण रूप में प्राकट्य हुआ, ऐसी आस्तिक जगत की मान्यता है। अतः श्रीमद्रामायण को वेदतुल्य प्रतिष्ठा प्राप्त है। धराधाम का आदिकाव्य का होने से इस में भगवान के लोकपावन चरित्र की सर्वप्रथम वाङ्मयी परिक्रमा है। इसके एक-एक श्लोक में भगवान के दिव्य गुण, सत्य, सौहार्द्र, दया, क्षमा, मृदुता, धीरता, गम्भीरता, ज्ञान, पराक्रम, प्रज्ञा-रंजकता, गुरुभक्ति, मैत्री, करुणा, शरणागत-वत्सलता-जैसे अनन्त पुष्पों की दिव्य सुगन्ध है। हिन्दी अनुवाद सहित, सचित्र, सजिल्द।

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श्रीमद्वाल्मीकी रामायण (मूलमात्रम ) SHRIMADVALMIKI KI RAMYAN [MULMAATRM]

श्रीमद्वाल्मीकी रामायण (मूलमात्रम )

वाल्मीकीय रामायण संस्कृत साहित्य का एक आरम्भिक महाकाव्य है जो संस्कृत भाषा में अनुष्टुप छन्दों में रचित है। इसमें श्रीराम के चरित्र का उत्तम एवं वृहद् विवरण काव्य रूप में उपस्थापित हुआ है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित होने के कारण इसे ‘वाल्मीकीय रामायण’ कहा जाता है।

वर्तमान में राम के चरित्र पर आधारित जितने भी ग्रन्थ उपलब्ध हैं उन सभी का मूल महर्षि वाल्मीकि कृत ‘वाल्मीकीय रामायण’ ही है। ‘वाल्मीकीय रामायण’ के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को ‘आदिकवि’ माना जाता है और इसीलिए यह महाकाव्य ‘आदिकाव्य’ माना गया है।यह महाकाव्य भारतीय संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आयामों को प्रतिबिम्बित करने वाला होने से साहित्य रूप में अक्षय निधि है।

त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि के श्रीमुख से साक्षात वेदों का ही श्रीमद्रामायण रूप में प्राकट्य हुआ, ऐसी आस्तिक जगत की मान्यता है। अतः श्रीमद्रामायण को वेदतुल्य प्रतिष्ठा प्राप्त है। धराधाम का आदिकाव्य का होने से इस में भगवान के लोकपावन चरित्र की सर्वप्रथम वाङ्मयी परिक्रमा है। इसके एक-एक श्लोक में भगवान के दिव्य गुण, सत्य, सौहार्द्र, दया, क्षमा, मृदुता, धीरता, गम्भीरता, ज्ञान, पराक्रम, प्रज्ञा-रंजकता, गुरुभक्ति, मैत्री, करुणा, शरणागत-वत्सलता-जैसे अनन्त पुष्पों की दिव्य सुगन्ध है। हिन्दी अनुवाद सहित, सचित्र, सजिल्द।

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मूलरामायण/ Mool Ramayan

अयोध्या के राजकुमार राम अपने पिता के वचन के कारण वनवास में चले जाते हैं। बाद में, रावण ने सीता का अपहरण कर लिया और राम ने उसे बचाने के लिए उसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और अयोध्या लौट आए।

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वैराग्य -संदीपनी और बरवे रामायण/ Vairagya- Sandipani our Barve Ramayan

हिन्दी साहित्य के आकाश के परम नक्षत्र गोस्वामी तुलसीदासजी भक्तिकाल कीसगुण धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि है। तुलसीदास एक साथकवि,भक्त तथा समाजसुधारक इन तीनो रूपों में मान्य है। इनका जन्म सं.१५८९को बांदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नामआत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। इनका विवाह दीनबंधु पाठक कीपुत्री रत्नावली से हुआ था। अपनी पत्नी रत्नावली से अत्याधिक प्रेम के कारणतुलसी को रत्नावली की फटकार ” लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ” सुननीपड़ी जिससे इनका जीवन ही परिवर्तित हो गया । पत्नी के उपदेश से तुलसी के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। इनकेगुरु बाबा नरहरिदास थे,जिन्होंने इन्हे दीक्षा दी। इनका अधिकाँश जीवन चित्रकुट,काशी तथा अयोध्या में बीता । इनका देहांत सं.१६८० में काशी के असी घाट पर हुआ –
 
संवत सोलह सौ असी ,असी गंग के तीर ।
श्रावण शुक्ला सप्तमी ,तुलसी तज्यो शरीर । ।

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बालचित्र रामायण सम्पूर्ण/ Balchitra Ramayan- Sampoorn

भगवान श्री राम को भारतीय संस्कृति की आत्मा माना जाता है। इस पुस्तक में श्री राम के विभिन्न दिव्य खेलों का छियानबे रंग का चित्रण दिया गया है। प्रत्येक दृष्टांत के बाद खेल से संबंधित घटनाओं को दर्शाने वाला एक छंद होता है। पुस्तक युवाओं के लिए बहुत उपयोगी है

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मंत्र रामायण/ Mantra Ramayan

मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।

रामायण का सबसे बडा मंत्र मिल जाये तो संसार की कोई भी निधि उसके सामने मायना नही रखती है,निधि को तो चोर ले जायेंगे,लुटेरे लूट लेंगे,लेकिन अगर यह निधि अगर ह्रदय में निवास करते है,तो फ़िर से वापस सभी निधियां आ जायेंगी.रामायण के सबसे बडे मंत्र का बखान श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने कितनी खूबशूरती से किया है:-

“राम रमेति रमेति रमो,रामेति मनोरमे,सहस्त्र नाम तातुल्यम राम नाम वरानने”

इस मंत्र को ह्रदय में रखने के बाद संसार की सभी अमूल्य निधियां मनुष्य की दासी बन जायेंगी,और उसे किसी प्रकार का डर,भय,गरीबी,अपमान,आदि किसी भी बात को सहन नही करना पडेगा.इस मंत्र को मैने अपनाया है,और आज भी मेरे ह्रदय में निवास करता है,इस मंत्र को मैने साक्षात प्रभावी माना है,इसका एक प्रमाण आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ.

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रामायण के प्रमुख पात्र/ Ramayan ke pramukh patra

भगवान् श्रीराम का चरित्र अनन्त आदर्श गुणों का आगार तथा भारतीय संस्कृति का प्राण है। चित्रकथा की इस पुस्तक में मनु-शतरूपा को वरदान, देवताओं की प्रार्थना, श्रीरामावतार, सच्चिदानन्द के ज्योतिषी, दशरथ के भाग्य आदि प्रत्येक लीला के साथ उससे सम्बन्धित आकर्षक एवं बहुरंगे चित्र भी दिये गये हैं।

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रामायण के कुछ आदर्श पात्र/ Ramayan ke Kuch Aadarsh Patra

इस पुस्तक में भगवान् श्री राम, श्री लक्ष्मण, श्री भरत, श्री शत्रुघ्न, भक्त हनुमान् तथा भगवती श्री सीताजी के अनुकरणीय पावन चरित्र का सुन्दर चित्रण किया गया है।

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