गोपी प्रेम/Gopi Prem

25.00

“गोपी-प्रेम पुस्तक एक अत्यंत भावपूर्ण और आध्यात्मिक ग्रंथ है, जो भगवान श्रीकृष्ण और ब्रज की गोपियों के मध्य हुए दिव्य प्रेम का विश्लेषण करता है। यह प्रेम लौकिक नहीं, बल्कि परम आध्यात्मिक और आत्मिक प्रेम है, जो भक्ति के सर्वोच्च शिखर का प्रतीक है।

इस ग्रंथ में गोपियों की निश्काम, अनन्य और पूर्ण समर्पित भक्ति का अद्भुत चित्रण किया गया है। लेखक हनुमानप्रसाद पोद्दार जी ने अत्यंत मार्मिक और भक्तिपूर्ण भाषा में उस प्रेम को समझाने का प्रयास किया है जो मनुष्य को परमात्मा से एकात्म कर देता है।


🌸 मुख्य विषयवस्तु:

🔷 1. गोपियों का प्रेम – भक्ति का सर्वोच्च रूप:

गोपियाँ केवल भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका नहीं थीं, वे उनकी निश्छल भक्त थीं। उनका प्रेम ऐसा था जिसमें कोई शर्त, कोई स्वार्थ या प्रतिफल की आकांक्षा नहीं थी। यह प्रेम एक ऐसी परम भक्ति है जिसमें स्वयं का अस्तित्व भी अर्पित हो जाता है।

🔷 2. रासलीला का आध्यात्मिक अर्थ:

पुस्तक में रासलीला के बाह्य वर्णन से आगे बढ़कर उसके आध्यात्मिक रहस्य को उजागर किया गया है। यह दिखाया गया है कि भगवान कृष्ण का गोपियों के साथ रास, जीव और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है।

🔷 3. विरह में प्रेम की पराकाष्ठा:

गोपियों का वह प्रेम जो भगवान के विछोह में और भी तीव्र हो जाता है — यही विरह भाव भक्ति में गहराई का परिचायक है। श्रीकृष्ण के बिना वे असहाय, शून्य और वियोग में तप्त रहती थीं, पर उनका विश्वास और समर्पण अटूट था।

🔷 4. गोपियों की निष्ठा और समर्पण:

जब श्रीकृष्ण ने गोपियों की परीक्षा ली, तब भी वे डगमगाईं नहीं। उन्होंने ईश्वर के लिए समाज, कुटुंब, मान-मर्यादा, शरीर और आत्मा तक को त्याग दिया। यह त्याग ही उन्हें भक्ति के उच्चतम स्तर पर प्रतिष्ठित करता है।


🌿 भाषा एवं शैली:

हनुमानप्रसाद पोद्दार जी की लेखनी अत्यंत भावप्रवण, सरल और रसयुक्त है। वे शब्दों से नहीं, हृदय की भावनाओं से लिखते हैं। इस पुस्तक को पढ़ते समय पाठक का मन भी गोपी भाव से भर उठता है और वह श्रीकृष्ण की भक्ति में डूब जाता है।


🌼 विशेषताएँ:

  • भक्तों के लिए प्रेरणादायक ग्रंथ, जो भक्ति को केवल कर्मकांड नहीं, प्रेममय संबंध मानते हैं।

  • संवेदनशील और आध्यात्मिक मन के लिए अत्यंत ग्राह्य।

  • श्रीकृष्ण-भक्ति के सभी रसों का सुंदर संकलन।

  • गीताप्रेस की परंपरागत प्रस्तुति, जिसमें आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक गरिमा दोनों सुरक्षित हैं।


📌 निष्कर्ष:

“गोपी-प्रेम” केवल प्रेम की कथा नहीं, प्रेम का दर्शन है। यह ग्रंथ सिखाता है कि सच्ची भक्ति वह है जो अपने सुख-दुख की परवाह किए बिना, केवल भगवान के प्रति प्रेम में लीन रहती है।

यह पुस्तक उन सभी साधकों के लिए अमूल्य निधि है जो प्रेममय भक्ति को अपने जीवन का मार्ग बनाना चाहते हैं। यह ग्रंथ हमें श्रीकृष्ण के चरणों में वही निश्छल समर्पण सिखाता है जो गोपियों के हृदय में था।

Description

“गोपी-प्रेम पुस्तक एक अत्यंत भावपूर्ण और आध्यात्मिक ग्रंथ है, जो भगवान श्रीकृष्ण और ब्रज की गोपियों के मध्य हुए दिव्य प्रेम का विश्लेषण करता है। यह प्रेम लौकिक नहीं, बल्कि परम आध्यात्मिक और आत्मिक प्रेम है, जो भक्ति के सर्वोच्च शिखर का प्रतीक है।

इस ग्रंथ में गोपियों की निश्काम, अनन्य और पूर्ण समर्पित भक्ति का अद्भुत चित्रण किया गया है। लेखक हनुमानप्रसाद पोद्दार जी ने अत्यंत मार्मिक और भक्तिपूर्ण भाषा में उस प्रेम को समझाने का प्रयास किया है जो मनुष्य को परमात्मा से एकात्म कर देता है।


🌸 मुख्य विषयवस्तु:

🔷 1. गोपियों का प्रेम – भक्ति का सर्वोच्च रूप:

गोपियाँ केवल भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका नहीं थीं, वे उनकी निश्छल भक्त थीं। उनका प्रेम ऐसा था जिसमें कोई शर्त, कोई स्वार्थ या प्रतिफल की आकांक्षा नहीं थी। यह प्रेम एक ऐसी परम भक्ति है जिसमें स्वयं का अस्तित्व भी अर्पित हो जाता है।

🔷 2. रासलीला का आध्यात्मिक अर्थ:

पुस्तक में रासलीला के बाह्य वर्णन से आगे बढ़कर उसके आध्यात्मिक रहस्य को उजागर किया गया है। यह दिखाया गया है कि भगवान कृष्ण का गोपियों के साथ रास, जीव और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है।

🔷 3. विरह में प्रेम की पराकाष्ठा:

गोपियों का वह प्रेम जो भगवान के विछोह में और भी तीव्र हो जाता है — यही विरह भाव भक्ति में गहराई का परिचायक है। श्रीकृष्ण के बिना वे असहाय, शून्य और वियोग में तप्त रहती थीं, पर उनका विश्वास और समर्पण अटूट था।

🔷 4. गोपियों की निष्ठा और समर्पण:

जब श्रीकृष्ण ने गोपियों की परीक्षा ली, तब भी वे डगमगाईं नहीं। उन्होंने ईश्वर के लिए समाज, कुटुंब, मान-मर्यादा, शरीर और आत्मा तक को त्याग दिया। यह त्याग ही उन्हें भक्ति के उच्चतम स्तर पर प्रतिष्ठित करता है।


🌿 भाषा एवं शैली:

हनुमानप्रसाद पोद्दार जी की लेखनी अत्यंत भावप्रवण, सरल और रसयुक्त है। वे शब्दों से नहीं, हृदय की भावनाओं से लिखते हैं। इस पुस्तक को पढ़ते समय पाठक का मन भी गोपी भाव से भर उठता है और वह श्रीकृष्ण की भक्ति में डूब जाता है।


🌼 विशेषताएँ:

  • भक्तों के लिए प्रेरणादायक ग्रंथ, जो भक्ति को केवल कर्मकांड नहीं, प्रेममय संबंध मानते हैं।

  • संवेदनशील और आध्यात्मिक मन के लिए अत्यंत ग्राह्य।

  • श्रीकृष्ण-भक्ति के सभी रसों का सुंदर संकलन।

  • गीताप्रेस की परंपरागत प्रस्तुति, जिसमें आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक गरिमा दोनों सुरक्षित हैं।


📌 निष्कर्ष:

“गोपी-प्रेम” केवल प्रेम की कथा नहीं, प्रेम का दर्शन है। यह ग्रंथ सिखाता है कि सच्ची भक्ति वह है जो अपने सुख-दुख की परवाह किए बिना, केवल भगवान के प्रति प्रेम में लीन रहती है।

यह पुस्तक उन सभी साधकों के लिए अमूल्य निधि है जो प्रेममय भक्ति को अपने जीवन का मार्ग बनाना चाहते हैं। यह ग्रंथ हमें श्रीकृष्ण के चरणों में वही निश्छल समर्पण सिखाता है जो गोपियों के हृदय में था।

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