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Hanumanprasad Poddar ji

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार (भाई जी)

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, जिन्हें श्रद्धापूर्वक “भाई जी” कहा जाता है, भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और साहित्य के महान पुरोधा थे। उनका जन्म 26 अगस्त 1892 को पश्चिम बंगाल के राठी समाज में हुआ था। भाई जी ने भारतीय समाज के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान दिया और गीता प्रेस, गोरखपुर के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।


मुख्य योगदान

  1. गीता प्रेस, गोरखपुर की स्थापना:
    • भाई जी गीता प्रेस के प्रमुख प्रेरणा स्रोत थे। 1923 में इसकी स्थापना हुई और यह प्रेस भारतीय धर्म, आध्यात्मिकता, और संस्कृति को पुनर्जीवित करने का माध्यम बनी।
    • उन्होंने “कल्याण” पत्रिका की शुरुआत की, जो आज भी हिंदू धर्म और आध्यात्मिकता की प्रसिद्ध पत्रिका है। “कल्याण” ने लाखों पाठकों को धार्मिक ग्रंथों और नैतिक मूल्यों से जोड़ा।
  2. हिंदू धर्म और संस्कृति का प्रचार:
    • भाई जी ने सरल भाषा में धार्मिक ग्रंथों का संपादन और प्रकाशन किया ताकि आम लोग भी उन्हें समझ सकें।
    • उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता, रामचरितमानस, श्रीमद्भागवत, उपनिषद और अन्य ग्रंथों के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई।
  3. राष्ट्रसेवा और स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी:
    • भाई जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़े रहे और महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित थे।
    • उन्होंने अपने लेखन और कार्यों से समाज को जागरूक किया और धर्म को सामाजिक उत्थान का आधार बनाया।
  4. आध्यात्मिकता और साहित्य में योगदान:
    • भाई जी के लेखन में गहरी आध्यात्मिकता झलकती थी। उन्होंने अपने जीवन को साधना, सेवा और मानवता के लिए समर्पित किया।
    • उनके सरल, सुलभ और प्रेरक लेखन ने लाखों लोगों को धर्म और नैतिकता की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया।

जीवन मूल्य और आदर्श

  • भाई जी का जीवन अत्यंत सादा और आध्यात्मिक था। वे सदैव धर्म, सत्य, और सेवा के प्रति समर्पित रहे।
  • उनका मानना था कि धर्म का प्रचार समाज में शांति, सद्भाव और नैतिकता लाने का सबसे प्रभावी माध्यम है।

निधन

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार का निधन 22 मार्च 1971 को हुआ, लेकिन उनके विचार और योगदान आज भी भारतीय समाज में जीवंत हैं।


उपसंहार

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ने अपने जीवन से यह संदेश दिया कि धर्म और आध्यात्मिकता न केवल व्यक्तिगत उत्थान के लिए हैं, बल्कि पूरे समाज के कल्याण के लिए भी हैं। उनकी प्रेरणा से गीता प्रेस और “कल्याण” पत्रिका आज भी हिंदू धर्म और संस्कृति के प्रचार में अग्रणी हैं। भाई जी का जीवन सच्चे अर्थों में सेवा, त्याग और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।

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