Description
“सर्वोपरी-नित्यविहारिणी रस-सागर (अष्टाचार्य की वाणी)
यह पुस्तक श्रीधाम वृन्दावन से प्रकाशित एक दिव्य ग्रंथ है, जिसमें अष्टाचार्यों की रस-युक्त वाणियाँ संकलित हैं। इसमें श्रीराधा-कृष्ण के नित्यविहार और रसिक-भक्ति के रहस्यों का वर्णन है।
मुखपृष्ठ पर अंकित है:
“श्रीप्रियानिकुंजविहारिण्यै नमः”
“रत्नसिंहासनस्थ श्रीस्वामी हरिरायजी विजयी भवेत्”
इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि यह ग्रंथ श्रीहरिरायजी (पुष्टिमार्ग परंपरा) और श्री राधा-कृष्ण की लीलाओं को समर्पित है।
🌺 विषय वस्तु का सार:
“रस-सागर” एक आध्यात्मिक निधि है जिसमें अष्टाचार्यों (संभवत: वैष्णव या पुष्टिमार्गीय परंपरा के आठ रसिक संतों) की वाणी संकलित है। ये वाणियाँ राधा-कृष्ण की मधुर लीलाओं, रस, भक्ति, सेवा, और प्रेम की सूक्ष्मतम भावनाओं को अभिव्यक्त करती हैं।
यह ग्रंथ साधकों को भगवान की रागानुगा भक्ति, विशेषतः माधुर्य भाव से सेवा के मार्ग में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
📚 संभावित विषयवस्तु:
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श्रीराधा-कृष्ण की नित्य विहार लीलाएँ
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भक्तों के लिए सेवा मार्ग की दिशा
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रसिक संतों की सूक्तियाँ और शिक्षाएँ
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मन, वचन और कर्म से शुद्ध भक्ति की महिमा
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वृन्दावन के नित्य धाम का चिंतन
🙏 उपयुक्त पाठकवर्ग:
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राधा-कृष्ण के रागानुगा भक्ति में रुचि रखने वाले
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पुष्टिमार्गीय या अन्य रसिक परंपरा के साधक
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वृन्दावन लीला रस में तल्लीन भक्त
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संतों की वाणी में आनंद लेने वाले पाठक
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