Description
श्री वृन्दावन रस प्राकट्यकर्ता कर्ता वंशी स्वरूप रसिक आचार्य महाप्रभु श्रीहित हरिवंश चन्द्र जी महाराज द्वारा उद्गलित श्री हित चतुरासी श्री वृन्दावन रस की वाङगमय मूर्ति है। जिस रूप को वेदों ने रसो वै सः कहकर संकेत मात्र किया उसे ही उसी रस ने श्रीहित हरिवंश के रूप में प्रगट होकर जीवों पर कृपा करने के लिए वाणी का विषय बनाया जिसे हम श्री हित चतुरासी. स्फुट वाणी एवं श्रीराधा रस सुधा निधि के रूप में जानते हैं,। यह वाणी समुद्र की तरह अगाध एवं अपार है जिसे उनकी कृपा से ही समझा जा सकता है।
इस नित्य विहार रस पूर्ण ग्रन्थ के प्रणेता हैं- रसिकाचार्य वयं गोस्वामी श्रीहित हरिवंश चन्द्र महाप्रभुपाद इस सम्पूर्ण ग्रन्थ में कुल चौरासी ही पद हैं, शायद इसी से हित चौरासी नाम दिया गया है ग्रन्थ के सम्पूर्ण पद मुक्तक हैं। प्रत्येक पद अपने लिये स्वतंत्र है, वह दूसरे पद की अपेक्षा नहीं रखता. तथापि सम्पूर्ण ग्रन्थ में आद्यन्त केवल एक ही विषय परमोज्वल शृंगार-विशुद्ध वृन्दावन रस विलास वर्णित है; यह वर्णन कितना जागृत वर्णन है, कहने की आवश्यकता नहीं। संस्कृत साहित्य में जिस प्रकार श्रीजयदेव कविराज का गीत गोविन्द महाकाव्य शृङ्गार रस वर्णन के सर्वोच्च सिंहासन पर आसीन है, उसी प्रकार ब्रज भाषा साहित्य में हित चौरासी का स्थान है काव्य के गुण, अर्थ, अनुप्रास, उक्ति चोज, अलंकार, भाव व्यञ्जना, प्रसाद, शब्द माधुर्य, अर्थ माधुर्य मौलिकता आदि गुणों में यह ग्रन्थ अपने समान आप ही है।
भाषा में हित चौरासी एक अनुपम ग्रन्थ है पढ़ते-पढ़ते कहीं-कहीं तो कवि कोकिल जयदेव का स्मरण हो आता है। श्री गोसाई जी ने ब्रज साहित्य का भारी उपकार किया है श्री राधा कृष्ण प्रकृति पुरुष का एक दिव्य रहस्य कहा जाता है….।
अस्तु, उपासना और भक्ति के क्षेत्र में अवतार माने जाते हैं। यह वंशी साक्षात् प्रेम रूपा है। अतः यह बात निर्विवाद सिद्ध हो जाती है कि श्रीहित पारस्परिक प्रेम के ही दिव्य अवतार हैं। इनकी इष्टाराध्या हैं नित्य रास रस विहारिणी. वृन्दावन निभृत निकुञ्ज विलासिनी, नित्य नव किशोरी प्रेम प्रतिमा श्रीराधा,
अतः श्रीहित हरिवंश चन्द्र ने सर्वत्र ही अपने पद एव श्लोकों में रस मूर्ति श्रीराधा के रूप, गुण, लीला एवम् स्वविलास का ही वर्णन किया है, क्योंकि श्रीकृष्ण की वंशी भी तो यही सब कुछ करती है।
यहाँ ध्यान दे :
क्योंकि इन्होंने अत्यन्त सूक्ष्म प्रेम की बात कही है। इस सूक्ष्म प्रेम का सरस गान हित चौरासी की पदावली है। यद्यपि श्रीहरिवंश कृपा के बिना उस गाना रस में किसी का प्रवेश नहीं है तथापि चक्षु प्रवेश के ही लिये सही, उस विधा का इस प्राक्कथन में दिग्दर्शन कराया गया है। अतएव पाठकों से विनम्र प्रार्थना है कि “हित चौरासी’ में जो कुछ है उसे रसिक जनों की कृपा के द्वारा समझे सुनें और अन्तर्गत करें। रसमुर्ति श्री हित हरिवंश महाप्रभु जी के चरणों मे बैठकर श्री युगल सरकार के अथाह अगाध रस सागर मे गोता लगाए।
Additional information
Weight | 0.4 g |
---|
Related products
Original price was: ₹120.00.₹90.00Current price is: ₹90.00.
25% Off
Original price was: ₹150.00.₹120.00Current price is: ₹120.00.
20% Off
Original price was: ₹140.00.₹100.00Current price is: ₹100.00.
29% Off
Reviews
There are no reviews yet.