रहस्यमय प्रबचन/ Rahassyamaya Pravachan

40.00

रहस्यमय प्रवचन पुस्तक भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक अनमोल ग्रंथ है, जिसकी रचना प्रसिद्ध धार्मिक चिंतक और लेखक श्री जयदयाल गोयंदका ने की है। यह पुस्तक उन गूढ़ और गहन रहस्यों का विश्लेषण करती है, जिन्हें सामान्य जनमानस अक्सर समझ नहीं पाता, परंतु जिनकी जानकारी आत्मिक उन्नयन के लिए अत्यंत आवश्यक होती है।

पुस्तक का उद्देश्य है — पाठक को आध्यात्मिकता के उच्च स्तर तक पहुँचाने हेतु जीवन, आत्मा, परमात्मा, माया, कर्म, पुनर्जन्म, मोक्ष और भक्ति जैसे विषयों का स्पष्ट एवं रहस्यमय रूप से विवेचन करना। इसमें वर्णित प्रवचन न केवल तात्त्विक हैं, बल्कि आत्मा की अंतर्यात्रा के साक्षी भी हैं।


मुख्य विषयवस्तु:

  1. शिव-तत्त्व की व्याख्या:
    पुस्तक के मुखपृष्ठ पर शिवजी का चित्र यह संकेत करता है कि इसमें शिव के स्वरूप, उनके प्रतीकों (त्रिनेत्र, नाग, चंद्र, गंगा, जटाएं आदि) का रहस्यात्मक और दार्शनिक विश्लेषण है। लेखक शिव को केवल एक देव नहीं, अपितु ‘अविनाशी चैतन्य’ के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

  2. आत्मा और परमात्मा का संबंध:
    आत्मा क्या है? वह शरीर से भिन्न कैसे है? परमात्मा से उसका क्या संबंध है? इस पुस्तक में इन प्रश्नों का उत्तर शास्त्रीय प्रमाणों, उपनिषदों और भगवद्गीता के माध्यम से दिया गया है।

  3. माया और मोह का जाल:
    संसार क्यों इतना मोहक प्रतीत होता है? मनुष्य बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र में क्यों फँसता है? लेखक माया की शक्तियों और उसके प्रभाव का वर्णन करते हुए बताते हैं कि किस प्रकार साधक उसे पहचान कर पार हो सकता है।

  4. साधना और मोक्ष का मार्ग:
    साधना के विभिन्न स्वरूपों – जप, ध्यान, संकीर्तन, आत्मचिंतन आदि का वर्णन करते हुए मोक्ष (जीवन-मुक्ति) की प्रक्रिया को सरल एवं व्यावहारिक बनाया गया है। मोक्ष को केवल मृत्यु के बाद की अवस्था न मानकर, जीवन में ही उसे प्राप्त करने का मार्ग बताया गया है।

  5. भक्ति, ज्ञान और कर्म का संतुलन:
    यह पुस्तक बताती है कि केवल ज्ञान या केवल भक्ति पर्याप्त नहीं, अपितु तीनों—भक्ति, ज्ञान और निष्काम कर्म—का समन्वय ही आत्मोन्नति का मार्ग है।


विशेषताएँ:

  • सरल भाषा, गूढ़ अर्थ:
    लेखक ने अत्यंत जटिल आध्यात्मिक विषयों को बहुत ही सरल, बोधगम्य भाषा में प्रस्तुत किया है, जिससे सामान्य पाठक भी गहराई से समझ सके।

  • प्रमाण आधारित विवेचना:
    प्रत्येक प्रवचन शास्त्रों के प्रमाणों के साथ प्रस्तुत किया गया है—जैसे उपनिषद, भगवद्गीता, वेदांत सूत्र, पुराण आदि।

  • ध्यान और चिंतन को प्रेरित करने वाली शैली:
    पुस्तक पाठक को मात्र जानकारी ही नहीं देती, बल्कि आत्म-चिंतन और साधना की ओर प्रेरित करती है।

  • सनातन धर्म का सार:
    यह ग्रंथ सनातन वैदिक परंपरा की मूल शिक्षाओं को सहेजकर पाठक के समक्ष रखता है, जो आज की भौतिकता में आध्यात्मिक जागृति का दीपक बन सकता है।


पाठकों के लिए उपयोगिता:

  • साधकों, ध्यानियों, योगियों, तथा आध्यात्मिक मार्ग के जिज्ञासुओं के लिए यह एक अनमोल मार्गदर्शक है।

  • वे पाठक जो जीवन के गूढ़ प्रश्नों—“मैं कौन हूँ?”, “मेरा उद्देश्य क्या है?”, “मृत्यु के बाद क्या?”—का उत्तर खोज रहे हैं, उन्हें यह पुस्तक एक स्पष्ट दिशा प्रदान करती है।

  • आध्यात्मिक प्रवचनकारों के लिए भी यह पुस्तक एक उत्तम संदर्भ ग्रंथ है।


निष्कर्ष:

“रहस्यमय प्रवचन” केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं, अपितु यह आत्मा की गहराइयों में उतरने की एक यज्ञवेदी है। श्री जयदयाल गोयंदका जी ने इस ग्रंथ के माध्यम से सनातन धर्म के उन तत्त्वों को उद्घाटित किया है, जो सामान्य दृष्टि से छिपे रहते हैं। यह पुस्तक एक साधक के जीवन में प्रकाश का दीपक सिद्ध हो सकती है।

Description

रहस्यमय प्रवचन पुस्तक भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक अनमोल ग्रंथ है, जिसकी रचना प्रसिद्ध धार्मिक चिंतक और लेखक श्री जयदयाल गोयंदका ने की है। यह पुस्तक उन गूढ़ और गहन रहस्यों का विश्लेषण करती है, जिन्हें सामान्य जनमानस अक्सर समझ नहीं पाता, परंतु जिनकी जानकारी आत्मिक उन्नयन के लिए अत्यंत आवश्यक होती है।

पुस्तक का उद्देश्य है — पाठक को आध्यात्मिकता के उच्च स्तर तक पहुँचाने हेतु जीवन, आत्मा, परमात्मा, माया, कर्म, पुनर्जन्म, मोक्ष और भक्ति जैसे विषयों का स्पष्ट एवं रहस्यमय रूप से विवेचन करना। इसमें वर्णित प्रवचन न केवल तात्त्विक हैं, बल्कि आत्मा की अंतर्यात्रा के साक्षी भी हैं।


मुख्य विषयवस्तु:

  1. शिव-तत्त्व की व्याख्या:
    पुस्तक के मुखपृष्ठ पर शिवजी का चित्र यह संकेत करता है कि इसमें शिव के स्वरूप, उनके प्रतीकों (त्रिनेत्र, नाग, चंद्र, गंगा, जटाएं आदि) का रहस्यात्मक और दार्शनिक विश्लेषण है। लेखक शिव को केवल एक देव नहीं, अपितु ‘अविनाशी चैतन्य’ के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

  2. आत्मा और परमात्मा का संबंध:
    आत्मा क्या है? वह शरीर से भिन्न कैसे है? परमात्मा से उसका क्या संबंध है? इस पुस्तक में इन प्रश्नों का उत्तर शास्त्रीय प्रमाणों, उपनिषदों और भगवद्गीता के माध्यम से दिया गया है।

  3. माया और मोह का जाल:
    संसार क्यों इतना मोहक प्रतीत होता है? मनुष्य बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र में क्यों फँसता है? लेखक माया की शक्तियों और उसके प्रभाव का वर्णन करते हुए बताते हैं कि किस प्रकार साधक उसे पहचान कर पार हो सकता है।

  4. साधना और मोक्ष का मार्ग:
    साधना के विभिन्न स्वरूपों – जप, ध्यान, संकीर्तन, आत्मचिंतन आदि का वर्णन करते हुए मोक्ष (जीवन-मुक्ति) की प्रक्रिया को सरल एवं व्यावहारिक बनाया गया है। मोक्ष को केवल मृत्यु के बाद की अवस्था न मानकर, जीवन में ही उसे प्राप्त करने का मार्ग बताया गया है।

  5. भक्ति, ज्ञान और कर्म का संतुलन:
    यह पुस्तक बताती है कि केवल ज्ञान या केवल भक्ति पर्याप्त नहीं, अपितु तीनों—भक्ति, ज्ञान और निष्काम कर्म—का समन्वय ही आत्मोन्नति का मार्ग है।


विशेषताएँ:

  • सरल भाषा, गूढ़ अर्थ:
    लेखक ने अत्यंत जटिल आध्यात्मिक विषयों को बहुत ही सरल, बोधगम्य भाषा में प्रस्तुत किया है, जिससे सामान्य पाठक भी गहराई से समझ सके।

  • प्रमाण आधारित विवेचना:
    प्रत्येक प्रवचन शास्त्रों के प्रमाणों के साथ प्रस्तुत किया गया है—जैसे उपनिषद, भगवद्गीता, वेदांत सूत्र, पुराण आदि।

  • ध्यान और चिंतन को प्रेरित करने वाली शैली:
    पुस्तक पाठक को मात्र जानकारी ही नहीं देती, बल्कि आत्म-चिंतन और साधना की ओर प्रेरित करती है।

  • सनातन धर्म का सार:
    यह ग्रंथ सनातन वैदिक परंपरा की मूल शिक्षाओं को सहेजकर पाठक के समक्ष रखता है, जो आज की भौतिकता में आध्यात्मिक जागृति का दीपक बन सकता है।


पाठकों के लिए उपयोगिता:

  • साधकों, ध्यानियों, योगियों, तथा आध्यात्मिक मार्ग के जिज्ञासुओं के लिए यह एक अनमोल मार्गदर्शक है।

  • वे पाठक जो जीवन के गूढ़ प्रश्नों—“मैं कौन हूँ?”, “मेरा उद्देश्य क्या है?”, “मृत्यु के बाद क्या?”—का उत्तर खोज रहे हैं, उन्हें यह पुस्तक एक स्पष्ट दिशा प्रदान करती है।

  • आध्यात्मिक प्रवचनकारों के लिए भी यह पुस्तक एक उत्तम संदर्भ ग्रंथ है।


निष्कर्ष:

“रहस्यमय प्रवचन” केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं, अपितु यह आत्मा की गहराइयों में उतरने की एक यज्ञवेदी है। श्री जयदयाल गोयंदका जी ने इस ग्रंथ के माध्यम से सनातन धर्म के उन तत्त्वों को उद्घाटित किया है, जो सामान्य दृष्टि से छिपे रहते हैं। यह पुस्तक एक साधक के जीवन में प्रकाश का दीपक सिद्ध हो सकती है।

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