द्वादश ज्योतिर्लिंग/ Dwadash Jyotirling

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भगवान् शिव और उनके द्वादश ज्योतिर्लिंग ब्रह्मा, विष्णु और शिव-इन त्रिदेवों में जो ‘शिव’ की गणना है, वे ब्रह्मा नहीं हैं, क्योंकि प्रलयकाल में इनकी स्थिति नहीं रखती, इनकी भी आयु निर्धारित है। ‘महेश्वर-शिव’ (ब्रह्मा) का ही अस्तित्व निर्धारित है। सृष्टि प्रक्रिया को पुन: बढ़ाने के लिए महेश्वर-शिव द्वारा इनकी नियुक्ति की जाती है। महेश्वर शिव की इच्छा के अनुसार गुणों (सत,रज और तम) के क्षोभ (विकृति) से रजोगुण सम्पन्न ब्रह्मा, सतोगुण सम्पन्न विष्णु और तमोगुण सम्पन्न रुद्र (महेश/शिव) प्रकट हुए। ये तीनों ब्रह्माण्ड के त्रिदेव हैं, जबकि महाशिव, (महेश्वर) कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों के नायक हैं। ये त्रिदेव सृष्टि, स्थिति और लय के कार्य करने हेतु महेश्वर शिव द्वारा नियुक्त हुए हैं। ‘शिव’ शब्द का अर्थ है- कल्याण, अर्थात् भगवान् शिव कल्याण के देवता हैं। नंग-धडंग शरीर, सिर पर जटा, गले में मुण्डमाला, श्मशान में निवास, खाक-भभूत पोते हुए, संहार के लिए तत्पर सदाशिव वास्तव में मंगल के देवता हैं। यह उनका साकार रूप है। वे जब तामसिक शक्ति को धारण करके, ब्रह्माण्ड का नाश करते हैं, तो उन्हें प्रलय या संहार का देवता कहा जाता है।

‘लिग’ शब्द का अर्थ है- चिन्ह या पहचान। यह सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है, प्रलयकाल में समाहित हो जाती है, उसे ही लिंग कहते हैं। लिंग उस निर्गुण महेश्वर का प्रतीक चिन्ह है। प्रस्तुत में इन्हीं तत्वों की व्याख्या करते हुए, द्वादश शिवलिगों के विभिन्न स्थानों व समयों में प्रकट होने, उनके महत्व और पूजन आदि के बारे में कथाओं के माध्यम से सविस्तार वर्णन किया गया है। साथ ही शिव की अष्टमूर्तियों, भूतलिगों और अन्य प्रमुख व प्रसिद्ध शिवलिगों के महत्व, उनके स्थान, वहाँ पहुचने के मार्ग आदि की प्रामाणिक जानकारी चित्रों सहित दी गई है। इस कारण यह पुस्तक तीर्थाटन के साथ-साथ दुर्लभ जानकारी व पर्यटन की दृष्टि से भी उपयोगी है। प्रत्येक धार्मिक जिज्ञासु के लिए यह पुस्तक पठनीय व संग्रहणीय है।

Description

भगवान् शिव और उनके द्वादश ज्योतिर्लिंग ब्रह्मा, विष्णु और शिव-इन त्रिदेवों में जो ‘शिव’ की गणना है, वे ब्रह्मा नहीं हैं, क्योंकि प्रलयकाल में इनकी स्थिति नहीं रखती, इनकी भी आयु निर्धारित है। ‘महेश्वर-शिव’ (ब्रह्मा) का ही अस्तित्व निर्धारित है। सृष्टि प्रक्रिया को पुन: बढ़ाने के लिए महेश्वर-शिव द्वारा इनकी नियुक्ति की जाती है। महेश्वर शिव की इच्छा के अनुसार गुणों (सत,रज और तम) के क्षोभ (विकृति) से रजोगुण सम्पन्न ब्रह्मा, सतोगुण सम्पन्न विष्णु और तमोगुण सम्पन्न रुद्र (महेश/शिव) प्रकट हुए। ये तीनों ब्रह्माण्ड के त्रिदेव हैं, जबकि महाशिव, (महेश्वर) कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों के नायक हैं। ये त्रिदेव सृष्टि, स्थिति और लय के कार्य करने हेतु महेश्वर शिव द्वारा नियुक्त हुए हैं। ‘शिव’ शब्द का अर्थ है- कल्याण, अर्थात् भगवान् शिव कल्याण के देवता हैं। नंग-धडंग शरीर, सिर पर जटा, गले में मुण्डमाला, श्मशान में निवास, खाक-भभूत पोते हुए, संहार के लिए तत्पर सदाशिव वास्तव में मंगल के देवता हैं। यह उनका साकार रूप है। वे जब तामसिक शक्ति को धारण करके, ब्रह्माण्ड का नाश करते हैं, तो उन्हें प्रलय या संहार का देवता कहा जाता है।

‘लिग’ शब्द का अर्थ है- चिन्ह या पहचान। यह सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है, प्रलयकाल में समाहित हो जाती है, उसे ही लिंग कहते हैं। लिंग उस निर्गुण महेश्वर का प्रतीक चिन्ह है। प्रस्तुत में इन्हीं तत्वों की व्याख्या करते हुए, द्वादश शिवलिगों के विभिन्न स्थानों व समयों में प्रकट होने, उनके महत्व और पूजन आदि के बारे में कथाओं के माध्यम से सविस्तार वर्णन किया गया है। साथ ही शिव की अष्टमूर्तियों, भूतलिगों और अन्य प्रमुख व प्रसिद्ध शिवलिगों के महत्व, उनके स्थान, वहाँ पहुचने के मार्ग आदि की प्रामाणिक जानकारी चित्रों सहित दी गई है। इस कारण यह पुस्तक तीर्थाटन के साथ-साथ दुर्लभ जानकारी व पर्यटन की दृष्टि से भी उपयोगी है। प्रत्येक धार्मिक जिज्ञासु के लिए यह पुस्तक पठनीय व संग्रहणीय है।

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