Description
जगत की विपति विपति नहीं, जगत की सम्पति, सम्पति नहीं, भगवान् का विस्मरण ही विपति है और भगवान् का स्मरण ही सम्पति है |’
श्रीतुलसीदासजी के शब्दों में –
कह हनुमान बिपति प्रभु सोई |
जब तव सुमिरन भजन न होई ||
जिस काल में भगवान् का साधन-भजन-उनका मधुर स्मरण नहीं होता, वह काल भले ही सौभाग्य का माना जाय, उस समय चाहे चारों ओर यश, कीर्ति, मान, पूजा होती हो, सब प्रकार के भोग उपस्थित हों, समस्त सुख उपलब्ध हों, पर जो भगवान् को भूला हुआ हो, भगवान् की और से उदासीन हो, तो वह विपति में ही है – असली विपति है यह | इस विपति को भगवान् हरण करते हैं, अपने स्मरण की सम्पति देकर | यहाँ श्रीभगवान् की कृपा प्रतिफलित होती है |
Additional information
Weight | 0.3 g |
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